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स्टॉक मार्केट और क्रिप्टो मार्केट के बीच अंतर

स्टॉक मार्केट और क्रिप्टो मार्केट के बीच अंतर
स्टॉक एक्सचेंज जैसे बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE)- सेकेंडरी मार्केट हैं, जहां आप आईपीओ में खरीदे शेयर बेच सकते हैं. इस मार्केट में किसी लिस्टेड कंपनी के शेयरों की खरीद-बिक्री होती है. जब हम स्टॉक एक्सचेंज पर शेयर खरीदते-बेचते हैं तब हम वास्तव में सेकेंडरी मार्केट में ट्रेड कर रहे होते हैं. सेकेंडरी मार्केट में पैसे और शेयर इन्वेस्टर्स (बायर और सेलर) के बीच एक्सचेंज होते हैं. सेकेंडरी मार्केट में होने वाले ट्रांजेक्शन में कंपनी शामिल नहीं होती है. सेकेंडरी मार्केट को आफ्टर मार्केट भी कहते हैं क्योंकि यहां पहले से इश्यू किए गए शेयर ट्रेड होते हैं.

अंश एवं स्टॉक में क्या अंतर है?

इसे सुनेंरोकेंशेयरों को आंशिक रूप स्टॉक मार्केट और क्रिप्टो मार्केट के बीच अंतर से भुगतान किया जा सकता है या पूरी तरह से भुगतान किया जा सकता है। इसके विपरीत, स्टॉक हमेशा पूरी तरह से भुगतान किया जाता है। अंश में शेयरों को कभी भी स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है। स्टॉक के विपरीत, अंश में स्थानांतरित किया जा सकता है।

इसे सुनेंरोकेंStock: स्टॉक (जिसे इक्विटी के नाम से भी जाना जाता है) एक सिक्योरिटी है, जो किसी कंपनी के एक अंश के स्वामित्व का प्रतिनिधित्व करती है। यह स्टॉक के मालिक को कंपनी के एसेट और जितना स्टॉक उनके पास है, उसके लाभ के बराबर के अनुपात का अधिकार देता है। स्टॉक के यूनिट को ‘शेयर’ कहा जाता है।

स्टॉक में क्या अंतर है?

इसे सुनेंरोकेंकिसी निश्चित समय बिन्दु पर एक फर्म के पास उपलब्ध उत्पाद की मात्रा को स्टॉक कहते हैं। जबकि निश्चित समय में दी गई कीमत पर उत्पादक वस्तु की जितनी मात्रा बेचने को तैयार होता है उसे पूर्ति कहते हैं।

स्टॉक और शेयर में क्या अंतर है?

इसे सुनेंरोकेंशेयर एक विशिष्ट कंपनी में मालिकाना हक है , जबकि स्टॉक आपको एक से अधिक कंपनी में हिस्सेदारी प्रदान करते हैं। इसके अलावा, शेयर आपको लाभ के रूप में डिविडेंट प्रदान करते हैं, जबकि, स्टॉक में आपको एक फिक्स प्रॉफिट मिलता है। शेयर, कुछ पैसों में या फुल-अमाउंट पर जारी किए जाते हैं।

इसे सुनेंरोकेंशेयर मार्केट को 11 प्रमुख सेक्टर में विभाजित किया गया है।

स्टॉक और प्रभाव से आप क्या समझते हैं?

इसे सुनेंरोकेंस्टॉक एक समय बिंदु या निश्चित समय पर मापा जाने वाला चर है। प्रवाह वह चर है जो एक निश्चित समयावधि पर मापा जाता है। स्टॉक का समय-काल नहीं होता है। प्रवाह का समय-काल होता है।

स्टॉक का क्या अर्थ है स्टॉक में परिवर्तन से क्या अर्थ है?

इसे सुनेंरोकेंकारोबार एकक का स्टॉक या पूंजीगत स्टॉक उसके संस्थापकों द्वारा कारोबार में प्रदत्त मूल पूंजी या निवेश का प्रतिनिधित्व करता है। यह व्यापार के लेनदारों के लिए एक प्रतिभूति के रूप में कार्य करता है, चूंकि लेनदारों के स्टॉक मार्केट और क्रिप्टो मार्केट के बीच अंतर लिए हानिकर रूप से उसे आहरित नहीं किया जा सकता है।

Stock Market Tips: निवेश से पहले इन ‘Ratio’ के बारे में जानना जरूरी, सही शेयर चुनने में मिलेगी मदद

Stock Market Tips: निवेश से पहले इन ‘Ratio’ के बारे में जानना जरूरी, सही शेयर चुनने में मिलेगी मदद

कुछ खास रेशियो के जरिए स्टॉक चुनने में मदद मिल सकती है. (Image- Pixabay)

Stock Market Tips: स्टॉक मार्केट में जब आप सीधे निवेश करते हैं तो सबसे पहला काम होता है, बेहतर स्टॉक को चुनना. स्टॉक चुनते समय बहुत सावधानियां बरतनी होती हैं ताकि आपको शानदार मुनाफा हासिल हो सके. कभी-कभी आपने खबरों में पढ़ा होगा कि इस कंपनी का शेयर महंगा है तो इसे लेना सही नहीं है. ऐसे में आपके मन में जरूर सवाल उठता होगा कि कोई शेयर सस्ता है या महंगा, इसका पता कैसे चलता है कि किसी स्टॉक का भाव सही या नही. इसका कैलकुलेशन खास फाइनेंशियल रेश्यो से पता चलता है. इसके अलावा इन रेशियो से कंपनी की सेहत का भी अंदाजा लगता है. आइए इन कुछ खास रेशियो के बारे में जानते हैं जिनसे स्टॉक चुनने में मदद मिल सकती है.

Price to Earnings (P/E) Ratio

प्राइस टू अर्निंग्स रेशियो किसी कंपनी के मौजूदा शेयर भाव और प्रति शेयर आय (EPS) का अनुपात है. इससे किसी कंपनी के शेयर भाव के ओवरवैल्यूड या अंडरवैल्यूड का पता चलता है. इसे मल्टीपल जैसे कि 15x, 20x, 23x के रूप में लिखते हैं और इसके जरिए एक ही इंडस्ट्री की दो कंपनियों के बीच में तुलना की जा सकती है तो एक स्टॉक मार्केट और क्रिप्टो मार्केट के बीच अंतर ही कंपनी के ऐतिहासिक रिकॉर्ड को परखा जा सकता है. इसके अधिक होने का मतलब है कि भविष्य में ग्रोथ को लेकर अधिक उम्मीदें हैं या यह ओवरवैल्यूड है, वहीं दूसरी तरफ इसके कम होने का मतलब है कि कंपनी की ग्रोथ को लेकर अधिक उम्मीदें नहीं है या यह आउटपरफॉर्म कर सकती है यानी कि अंडरवैल्यूड है.

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Return on Equity (R/E) Ratio

यह किसी कंपनी की वित्तीय सेहत को मापने का एक पैमाना है जिसे नेट इनकम को कुल इक्विटी से डिवाइड करके निकालते हैं. इससे किसी कंपनी के शेयरों में निवेश पर रिटर्न का पता चलता है यानी कि यह निवेशकों को एक आइडिया देता है कि इसमें निवेश पर पूंजी कितनी बढ़ सकती है. यह कंपनी की प्रॉफिबिलिटी का मानक है कि कंपनी कितने बेहतर तरीके से प्रॉफिट जेनेरेट कर रही है.

इसका इस्तेमाल किसी स्टॉक मार्केट और क्रिप्टो मार्केट के बीच अंतर स्टॉक मार्केट और क्रिप्टो मार्केट के बीच अंतर कंपनी की बाजार पूंजी को इसके बुक वैल्यू से तुलना करने के लिए की जाती है. इसका मान कंपनी के मौजूदा शेयर भाव को प्रति शेयर के बुक वैल्यू से डिवाइड करके निकाला जाता है. बुक वैल्यू का मतलब बैलेंस शीट में दर्ज वैल्यू है. इसका इस्तेमाल आमतौर पर लांग टर्म निवेशकों द्वारा इस्तेमाल किया जाता है. इसकी वैल्यू एक से कम होने पर एक से कम होने को बेहतर माना जाता है लेकिन वैल्यू इंवेस्टर्स 3 तक भी बेहतर मानते हैं. यह रेशियो कम होने का मतलब शेयर डिस्काउंट पर है.

Dividend Yield (Dividend-Price Ratio)

इससे यह पता चलता है कि कंपनी अपने शेयर भाव की तुलना में कितना डिविडेंड दे रही है. इसे फीसदी के रूप में दिखाते हैं और इसकी वैल्यू डिविडेंड को शेयर भाव से डिवाइड करके निकालते हैं. हालांकि इसकी वैल्यू अधिक होने का मतलब यह नहीं है कि निवेश के लिए कोई स्टॉक बेहतर है क्योंकि शेयर भाव कम होने पर भी इसकी वैल्यू अधिक हो सकती है.

यह कंपनी के कुल कर्ज और इक्विटी का अनुपात है. यह बहुत महत्वपूर्ण अनुपात है जिससे पता चलता है कि कंपनी कितना लीवरेज इस्तेमाल कर रही है यानी कि कंपनी अपने कारोबार के लिए अपने (शेयरधारकों के) पैसों की तुलना में कितना कर्ज ले रही है. इस रेशियो के अधिक होने का मतलब अधिक रिस्क है. हालांकि लांग टर्म निवेशकों के लिए अधिक रेशियो का मतलब शॉर्ट टर्म निवेशकों की तुलना में अलग है क्योंकि लांग टर्म में देनदारी शॉर्ट टर्म से अलग होती है. आमतौर पर 2-2.5 का डेट-इक्विटी रेशियो अच्छा माना जाता है.

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By: ABP Live | Updated at : 21 Jun 2022 02:49 PM (IST)

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स्टॉक मार्केट में लगाना चाहते हैं पैसे तो पहले जान लें क्या हैं प्राइमरी और सेकेंडरी मार्केट?

  • Money9 Hindi
  • Updated On - September 29, 2022 / 12:52 PM IST

स्टॉक मार्केट में लगाना चाहते हैं पैसे तो पहले जान लें क्या हैं प्राइमरी और सेकेंडरी मार्केट?

स्टॉक मार्केट के जानकार आमतौर पर प्राइमरी और सेकेंडरी मार्केट जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं. आप अक्सर प्राइमरी और सेकेंडरी मार्केट के बारे में सुनते भी होंगे. क्या आप जानते हैं कि इनका मतलब क्या है और दोनों में क्या फर्क है? दरअसल, स्टॉक मार्केट दो तरह के होते हैं. पहला प्राइमरी मार्केट और दूसरा सेकेंडरी मार्केट. अब जानते हैं कि ये एक-दूसरे से अलग कैसे हैं?

प्राइमरी मार्केट

Price to Earnings (P/E) Ratio

प्राइस टू अर्निंग्स रेशियो किसी कंपनी के मौजूदा शेयर भाव और प्रति शेयर आय (EPS) का अनुपात है. इससे किसी कंपनी के शेयर भाव के ओवरवैल्यूड या अंडरवैल्यूड का पता चलता है. इसे मल्टीपल जैसे कि 15x, 20x, 23x के रूप में लिखते हैं और इसके जरिए एक ही इंडस्ट्री की दो कंपनियों के बीच में तुलना की जा सकती है तो एक ही कंपनी के ऐतिहासिक रिकॉर्ड को परखा जा सकता है. इसके अधिक होने का मतलब है कि भविष्य में ग्रोथ को लेकर अधिक उम्मीदें हैं या यह ओवरवैल्यूड है, वहीं दूसरी तरफ इसके कम होने का मतलब है कि कंपनी की ग्रोथ को लेकर अधिक उम्मीदें नहीं है या यह आउटपरफॉर्म कर सकती है यानी कि अंडरवैल्यूड है.

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Return on Equity (R/E) Ratio

यह किसी कंपनी की वित्तीय सेहत को मापने का एक पैमाना है जिसे नेट इनकम को कुल इक्विटी से डिवाइड करके निकालते हैं. इससे किसी कंपनी के शेयरों में निवेश पर रिटर्न का पता चलता है यानी कि यह निवेशकों स्टॉक मार्केट और क्रिप्टो मार्केट के बीच अंतर को एक आइडिया देता है कि इसमें निवेश पर पूंजी कितनी बढ़ सकती है. यह कंपनी की प्रॉफिबिलिटी का मानक है कि कंपनी कितने बेहतर तरीके से प्रॉफिट जेनेरेट कर रही है.

इसका इस्तेमाल किसी कंपनी की बाजार पूंजी को इसके बुक वैल्यू से तुलना करने के लिए की जाती है. इसका मान कंपनी के मौजूदा शेयर भाव को स्टॉक मार्केट और क्रिप्टो मार्केट के बीच अंतर प्रति शेयर के बुक वैल्यू से डिवाइड करके निकाला जाता है. बुक वैल्यू का मतलब बैलेंस शीट में दर्ज वैल्यू है. इसका इस्तेमाल आमतौर पर लांग टर्म निवेशकों द्वारा इस्तेमाल किया जाता है. इसकी वैल्यू एक से कम होने पर एक से कम होने को बेहतर माना जाता है लेकिन वैल्यू इंवेस्टर्स 3 तक भी बेहतर मानते हैं. यह रेशियो कम होने का मतलब शेयर डिस्काउंट पर है.

Dividend Yield (Dividend-Price Ratio)

इससे यह पता चलता है कि कंपनी अपने शेयर भाव की तुलना में कितना डिविडेंड दे रही है. इसे फीसदी के रूप में दिखाते हैं और इसकी वैल्यू डिविडेंड को शेयर भाव से डिवाइड करके निकालते हैं. हालांकि इसकी वैल्यू अधिक होने का मतलब यह नहीं है कि निवेश के लिए कोई स्टॉक बेहतर है क्योंकि शेयर भाव कम होने पर भी इसकी वैल्यू अधिक हो सकती है.

यह कंपनी के कुल कर्ज और इक्विटी का अनुपात है. यह बहुत महत्वपूर्ण अनुपात है जिससे पता चलता है कि कंपनी कितना लीवरेज इस्तेमाल कर रही है यानी कि कंपनी अपने कारोबार के लिए अपने (शेयरधारकों के) पैसों की तुलना में कितना कर्ज ले रही है. इस रेशियो के अधिक होने का मतलब अधिक रिस्क है. हालांकि लांग टर्म निवेशकों के लिए अधिक रेशियो का मतलब शॉर्ट टर्म निवेशकों की तुलना में अलग है क्योंकि लांग टर्म में देनदारी शॉर्ट टर्म से अलग होती है. आमतौर पर 2-2.5 का डेट-इक्विटी रेशियो अच्छा माना जाता है.

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