फॉरेक्स में बार क्या है?

Forex Reserve: लगातार 10 हफ्ते की गिरावट के बाद भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में 4.23 बिलियन फॉरेक्स में बार क्या है? डॉलर का हुआ इजाफा
Foreign Exchange Reserve पिछले 11 हफ्ते के दौरान भारत के फॉरेक्स रिजर्व में पहली बार यह बढ़ोतरी दर्ज की गई है। 13 मई को फॉरेक्स में बार क्या है? समाप्त हुए सप्ताह में भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में 2.676 बिलियन डॉलर की गिरावट दर्ज की गई थी।
मुंबई, एएनआइ। भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में पिछले 10 हफ्ते से लगातार गिरावट दर्ज की जा रही थी। हालांकि, 20 मई को समाप्त हुए सप्ताह में भारत के विदेशी मुद्रा भंडार (Forex Reserve) में 4.23 बिलियन डॉलर का इजाफा हुआ है। आरबीआई के अनुसार, इस बढ़ोतरी के बाद भारत का Forex Reserve 597.509 बिलियन डॉलर के स्तर पर पहुंच गया है।
पिछले 11 हफ्ते के दौरान भारत के फॉरेक्स रिजर्व में पहली बार यह बढ़ोतरी दर्ज की गई है। 13 मई को समाप्त हुए सप्ताह में भारत फॉरेक्स में बार क्या है? के विदेशी मुद्रा भंडार में 2.676 बिलियन डॉलर की गिरावट दर्ज की गई थी। 3 सितंबर 2021 को भारत का Forex Reserve सर्वकालिक उच्च स्तर 642.453 बिलियन डॉलर के स्तर पर पहुंच गया था। इसके बाद इसमें काफी तेजी से गिरावट दर्ज की गई।
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी साप्ताहिक आंकड़ों के अनुसार, 20 मई को समाप्त हुए सप्ताह में फॉरेक्स रिजर्व के सभी कंपोनेंट्स में बढ़ोतरी हुई और सबसे ज्यादा इजाफा विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों का हुआ।
विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों का मूल्य डॉलर में प्रदर्शित किया जाता है, हालांकि, इनमें गैर-डॉलर मुद्राएं जैसे यूरो, ब्रिटिश पाउंड स्टर्लिंग और जापानी येन के मूल्यों में उतार-चढ़ाव का असर भी शामिल होता है।
20 मई को समाप्त हुए सप्ताह में स्वर्ण भंडार (Gold Reserves) का मूल्य253 मिलियन डॉलर बढ़कर 30.823 बिलियन डॉलर हो गया।
भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) में भारत के भंडार की स्थिति 51 मिलियन डॉलर बढ़कर 5.002 बिलियन डॉलर हो गई और IMF के साथ भारत के स्पेशल ड्राइंग राइट्स (SDRs) का मूल्य 102 मिलियन डॉलर की बढ़ोतरी के साथ 18.306 बिलियन डॉलर के स्तर पर पहुंच गया।
स्क्रैच से फॉरेक्स ब्रोकर कैसे बनाएं?
फ़ोरेक्ष और क्रिप्टोकरेंसी बाजार लाभ कमाने के कई अवसर पेश करते हैं। कई उद्यमी और स्टार्ट-अप तेजी से तरीकों की तलाश में हैं कि बिटकॉइन ब्रोकरेज कैसे शुरू करें या फ़ोरेक्ष ब्रोकर कैसे बनाएं। जबकि कोई भी फ़ोरेक्ष ब्रोकर व्यवसाय बना सकता है, इसके लिए धन, समय और प्रयास की आवश्यकता होती है। अपने व्यवसाय को शामिल करने के अलावा, आपको उस देश की कानूनी आवश्यकताओं से परिचित होना चाहिए जहां आप काम करेंगे।
ब्रोकरेज फर्म शुरू करने की प्रक्रिया को नेविगेट करने में आपकी मदद करने के लिए, हमने नीचे दिए गए चरणों की रूपरेखा तैयार की है।
फ़ोरेक्ष ब्रोकर कैसे बनें?
पर्याप्त स्टार्ट अप पूंजी होने के अलावा, फ़ोरेक्ष ब्रोकर बनाने के लिए आपको कई अन्य घटकों की आवश्यकता होती है। पहला है बाजार पर शोध करना और आपके द्वारा दी जाने वाली सेवाओं के दायरे का निर्धारण करना। क्या आपका प्लेटफॉर्म केवल फिएट ट्रेडिंग का समर्थन करने वाला है या क्या आप क्रिप्टोकरेंसी को भी शामिल करने की योजना बना रहे हैं? यह एक नया और गतिशील बाजार है जो कई व्यापारियों को अपनी अस्थिरता के कारण आकर्षित करता है। मार्जिन ट्रेडिंग के बारे में क्या?
आपके द्वारा चुने गए उत्पादों का दायरा आपकी ब्रोकरेज फर्म के पंजीकरण के स्थान के लिए एक निर्णायक कारक होगा। कुछ क्षेत्राधिकार ब्रोकरेज के प्रति अधिक उदार हैं। चूंकि अलग-अलग देशों में लाइसेंसिंग आवश्यकताएं अलग-अलग हैं, इसलिए आमतौर पर अपतटीय क्षेत्रों और क्रिप्टो-फॉरवर्ड देशों जैसे एस्टोनिया, साइप्रस और ब्रिटिश वर्जिन द्वीप समूह की ओर देखने की सिफारिश की जाती है।
पंजीकरण प्रक्रिया के हिस्से के रूप में, आपको कॉर्पोरेट बैंक खाते स्थापित करने और विश्वसनीय पेमेंट सेवा प्रदाता खोजने की आवश्यकता होगी। यदि आप मार्जिन ट्रेडिंग का समर्थन करने की योजना बना रहे हैं, तो आपको क्रेडिट लाइन के बारे में बैंक से बातचीत करनी होगी। कुछ बैंकों में लंबी और जटिल सत्यापन और अनुमोदन प्रक्रियाएं होती हैं। आगे की योजना बनाएं और इस प्रक्रिया के लिए पर्याप्त समय दें। आपको KYC/AML सत्यापन प्रक्रियाओं के लिए व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने की आवश्यकता हो सकती है या सभी औपचारिक मामलों में आपका प्रतिनिधित्व करने के लिए एक स्थानीय वकील को एक अनुचर पर रखने की आवश्यकता हो सकती है।
एक फ़ोरेक्ष ब्रोकर बनने और बिना किसी समस्या के मंच चलाने के लिए, आपको IT पेशेवर, लेखाकार, कानूनी और सहायक कर्मियों की एक टीम की आवश्यकता होगी। यह सुनिश्चित करने के लिए न्यूनतम है कि आप डेटा सुरक्षा कानूनों का अनुपालन कर रहे हैं और आप सभी तकनीकी और कानूनी मुद्दों को समय पर हल करने में सक्षम हैं। ब्रोकरेज कंपनियों को अक्सर साइबर अपराधियों द्वारा लक्षित किया जाता है क्योंकि वे बड़ी मात्रा में वित्तीय लेनदेन की प्रक्रिया और भंडारण करते हैं। इसलिए आपको अपने सॉफ़्टवेयर, वेबसाइट और भुगतान प्रसंस्करण गेटवे की सुरक्षा के लिए एक ठोस ढांचे की आवश्यकता है। भले ही शुरुआत में आपके पास भौतिक कार्यालय स्थान न हो, आपका वर्चुअल कार्यालय पूरी तरह कार्यात्मक और सुरक्षित होना चाहिए।
फ़ोरेक्ष ब्रोकर क्यों बनें?
फ़ोरेक्ष ब्रोकरेज शुरू करने से निष्क्रिय आय अर्जित करने के लिए एक नया स्थान खुल सकता है। फ़ोरेक्ष और क्रिप्टो बाजार लाभ के लिए बड़ी संभावनाओं के साथ बहुत प्रतिस्पर्धी और गतिशील हैं।
यदि आप ब्रोकरेज फर्म शुरू करने का कोई तरीका ढूंढ रहे हैं, तो एक व्हाइट लेबल पार्टनर एक बेहतर विकल्प हो सकता है जब आप अभी शुरुआत कर रहे हों। एक नई ब्रोकरेज के लिए, इसका मतलब है कम परिचालन खर्च, कानूनी आवश्यकताओं में ढील और एक तेज सेट अप प्रक्रिया। पहले महीनों में, जब आप अभी भी एक ग्राहक आधार बनाने की कोशिश कर रहे हैं, तो व्हाइट लेबल पार्टनर सभी व्यापारिक कार्यों को संभालेगा। एक बार जब आप अपना ब्रांड और ग्राहक आधार स्थापित कर लेते हैं, तो आप संचालन और लाभ पर पूर्ण नियंत्रण लेने के बारे में सोचना शुरू कर सकते हैं। एक ब्रांड और ग्राहक आधार स्थापित करने के बाद, आपके ब्रोकरेज के लिए अतिरिक्त वित्तपोषण प्राप्त करना बहुत आसान है।
एक व्हाइट लेबल ब्रोकरेज प्रदाता के साथ काम करने से खर्च कम से कम रहता है। इसका मतलब है कि आप केवल वेबसाइट और ब्रोकरेज के 'फ्रंट एंड' के लिए जिम्मेदार होंगे, व्हाइट लेबल व्यवसाय बैकएंड संचालन फॉरेक्स में बार क्या है? का ख्याल रखेगा। अलग-अलग व्हाइट लेबल प्रदाताओं की अलग-अलग फीस होती है, इसलिए आपको एक साथी चुनने से पहले तुलना और शोध करने की आवश्यकता होती है। सामान्यतया, एक व्हाइट लेबल प्रदाता के साथ साझेदारी करने पर अपने आप से ब्रोकरेज स्थापित करने की तुलना में कम लागत आती है।
'Forex trading'
शुक्रवार सुबह के सत्र में भारतीय रुपये में 80.75 प्रति डॉलर की दर से कारोबार हो रहा था. शुक्रवार को रुपया 80.6888 पर खुला, जबकि पिछले सत्र में यह 81.8112 पर बंद हुआ था.
कच्चे तेल की कीमतों और डॉलर (Dollar) सूचकांक में मजबूती से अमेरिकी मुद्रा (American ) के मुकाबले रुपया गुरुवार को 55 पैसे गिरकर 82.17 प्रति डॉलर के सर्वकालिक निचले स्तर पर पहुंच गया.
मंगलवार को शुरुआती कारोबार में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 31 पैसे की मजबूती के साथ 81.51 के भाव पर पहुंच गया. विदेशी बाजारों में डॉलर के कमजोर पड़ने और घरेलू शेयर बाजारों में लिवाली का जोर रहने से रुपये को फायदा हुआ.
अफगानिस्तान में पश्चिमी देशों से सहायता प्राप्त करने में क्रिप्टोकरेंसीज से काफी मदद मिली थी। विदेश में मौजूद कुछ संगठनों ने सहायता उपलब्ध कराने के लिए क्रिप्टोकरेंसीज का इस्तेमाल किया था
अफगानिस्तान में पश्चिमी देशों से सहायता प्राप्त करने में क्रिप्टोकरेंसीज से काफी मदद मिली थी। विदेश में मौजूद कुछ संगठनों ने सहायता उपलब्ध कराने के लिए क्रिप्टोकरेंसीज का इस्तेमाल किया था
अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार (interbank forex exchange market) में बृहस्पतिवार को रुपया सीमित दायरे में कारोबार के बीच छह पैसे टूटकर 79.92 प्रति डॉलर पर आ गया. अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया 79.80 पर खुला. दिन में कारोबार के दौरान यह 79.80 से 79.93 प्रति डॉलर के बीच रहा. अंत में यह छह पैसे की गिरावट के साथ 79.92 प्रति डॉलर पर बंद फॉरेक्स में बार क्या है? हुआ. पिछले कारोबारी सत्र में रुपया 79.86 प्रति डॉलर रहा था.
घरेलू शेयर बाजार में पॉजिटिव ट्रेडिंग के बीच शुक्रवार को शुरुआती कारोबार में रुपया 23 पैसे की बढ़त के साथ 74.70 प्रति डॉलर पर पहुंच गया.
मजबूत वैश्विक धारणा के बीच अमेरिकी फेडरल रिजर्व की बहुप्रतीक्षित ब्याज दर वृद्धि को लेकर फॉरेक्स में बार क्या है? अनिश्चितता बढ़ने से सोमवार को रुपया 67 रुपये प्रति डॉलर से भी नीचे लुढ़ककर 27 माह के निचले स्तर पर पहुंच गया।
रुपया लगातार गिरावट बरकरार रखते हुए शुक्रवार को शुरुआती कारोबार में डॉलर के मुकाबले और 24 पैसे टूटकर 65.34 के स्तर पर पहुंच गया।
डॉलर के मुकाबले रुपये में गुरुवार को छठे दिन गिरावट का रुख रहा। अंतर-बैंक विदेशी मुद्रा बाजार में डॉलर की तुलना में रुपया 11 पैसे नीचे करीब नौ महीने के निचले स्तर 62.07 प्रति डॉलर पर खुला।
500 अरब डॉलर के पार विदेशी मुद्रा भंडार: तीन दशक में शून्य से शिखर तक कैसे पहुंचा भारत
Forex reserve record : देश को 1991 में ऐसा वक्त भी देखना पड़ा था जब विदेशी मुद्रा भंडार सर्वकालिक निचले स्तर पर पहुंच गया। तब देश के पास 1 से 2 हफ्ते तक के आयात के लायक ही अमेरिकी डॉलर्स बचे थे। आज तीन दशक बाद भारत के पास 500 अरब डॉलर से ज्यादा का विदेशी मुद्रा भंडार हो गया है।
भारत का फॉरेक्स रिजर्व 500 अरब डॉलर के पार।
हाइलाइट्स
- भारत ने विदेशी मुद्रा भंडार के मामले में नई मंजिल तय कर ली है
- इतिहास में पहली बार देश का फॉरेक्स रिजर्व 500 अरब डॉलर के पार हो गया है
- 30 साल पहले वर्ष 1991 में विदेशी मुद्रा भंडार शून्य पर चला गया था और खूब शर्मिंदगी झेलनी पड़ी थी
- बीते तीन दशक में भारत ने शून्य से शिखर तक का रास्ता तय कर लिया है
याद कीजिए वर्ष 1991 का भुगतान संकट
क्यों भूल गए 1991 का भुगतान संकट? हां, वही दौर जब भारत के पास सिर्फ एक से दो सप्ताह तक के आयात की क्षमता बची थी। 1980-90 के दशक में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार खाली होते-होते ऐसी स्थिति में पहुंच गया था कि 1991 में देश को अपना 'सोने का खजाना' गिरवी रखना पड़ गया। जब देश के हालात ऐसे बन रहे थे, तब केंद्र में खिचड़ी सरकार में उठापठक का दौर चल रहा था। प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की समाजवादी सरकार के वित्त मंत्री थे यशवंत सिन्हा जिन्होंने सोने को गिरवी रखने के प्रस्ताव वाली फाइल पर दस्तखत किया। तब सोना खरीदा था स्विट्जरलैंड के बैंक UBS ने और भारत को बदले में मिला था 20 करोड़ डॉलर।
आनंद महिंद्रा ने दिलाई उस दौर की याद
देश के प्रसिद्ध उद्योगपति आनंद महिंद्रा ने विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि पर खुशी जताते हुए उस दौर को याद किया। महिंद्रा ने कहा, '30 साल पहले भारत का विदेशी मुद्रा भंडार लगभग शून्य हो गया था। अब हमारे पास तीसरा सबसे बड़ा वैश्विक भंडार है।' उन्होंने कहा, 'इस अनिश्चित समय में यह खबर मनोबल बढ़ाने वाली है। अपने देश की क्षमता को मत भूलें और आर्थिक वृद्धि के रास्ते पर वापस आने के लिए इस संसाधन का बुद्धिमता से उपयोग करें।'
पूर्व RBI गवर्नर ने बताई शर्मिंदगी की वह कहानी
हालांकि जून में सत्ता परिवर्तन हुआ और नरसिम्हा राव नए प्रधानमंत्री बने, लैकिन हालात में सुधार नहीं हुआ। देश के पास सिर्फ तीन सप्ताह तक के आयात भर का मुद्रा भंडार था। बैंक ऑफ इंग्लैंड और बैंक ऑफ जापान भारत को कर्ज देने को तैयार तो हुआ, लेकिन बदले में सोना गिरवी रखने की शर्त पर। पूर्व आरबीआई गवर्नर वाईवी रेड्डी ने अपने संस्मरण 'अडवाइज ऐंड डिसेंट' में 1991 की घटना बहुत बारीक विवरण दिया है। भुगतान संकट से उबरने के लिए सरकार ने बैंक ऑफ इंग्लैंड और बैंक ऑफ जापान के पास करीब 47 टन सोना गिरवी रखने का फैसला लिया था। इसके एवज में उसे 40.5 करोड़ डॉलर की राशि मिलनी थी।
गिरवी रखने लिए भेजा जा रहा था सोना, तभी.
वाईवी रेड्डी बताते हैं कि सोना आरबीआई से जिस वैन में एयरपोर्ट भेजा जा रहा था, उसका टायर बीच रास्ते में फट गया। सोने से भरा वाहन जैसे ही रास्ते में रुका तो उसकी सुरक्षा में तैनात आधा दर्जन जवानों ने उसे चारों ओर से घेर लिया। 'अडवाइज ऐंड डिसेंट' में रेड्डी ने बताया कि सुरक्षा कर्मियों की हरकत देख वैन के आसपास कई लोग जुटने लगे। अच्छा था कि किसी के पास उस दौरान स्मार्टफोन नहीं था कि कोई फोटो क्लिक कर उसे ट्विटर पर ट्वीट कर पाए। हालांकि, एयरपोर्ट पर किसी के कैमरे ने उस पल को फॉरेक्स में बार क्या है? कैद कर लिया था।
उदारीकरण से खुला विदेशी पूंजी का रास्ता
खैर, इस जोरदार झटके ने नए प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव को अपने वित्त मंत्री मनमोहन सिंह के साथ मिलकर वह रणनीति बनाने को मजबूर कर दिया जिससे भविष्य में भारत को ऐसी शर्मनाक परिस्थिति से कभी नहीं गुजरना पड़े। उदारीकरण की रूपरेखा तैयार हुई, भारत को विदेशी पूंजी के लिए खोला गया और धीरे-धीरे भारत में विदेशी पूंजी के रूप में विदेशी मुद्रा आने लगी। आज भारत के पास 500 अरब डॉलर यानी आधा ट्रिलियन डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है।
मनमोहन के शासन में खूब बढ़ा फॉरेक्स रिजर्व
नीचे का ग्राफ देखकर अंदाजा लगा सकते हैं कि 1994 से ही भारत का फॉरेक्स रिजर्व बढ़ने लगा, लेकिन 2005 से इसने तेज गति से वृद्धि हासिल की। अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में 1999 में बनी पहली गैर-कांग्रेसी सरकार थी जिसने देश के इतिहास में पांच साल का शासन पूरा किया। तब राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) 2004 में भी सत्ता वापसी को लेकर बिल्कुल आश्वस्त था। चुनावों में 'शाइनिंग इंडिया' का नारा बुलंद किया जा रहा था, लेकिन नतीजे आए तो जीत कांग्रेस की अगुवाई वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) की हुई। प्रधानमंत्री वही मनमोहन सिंह बने जिन्होंने 1991 में बतौर वित्त मंत्री विदेशी मुद्रा भंडार को समृद्ध करने का रास्ता खोला था। अब जब वह खुद प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे तो 10 साल के उनके लागातर दो कार्यकाल में फॉरेक्स रिजर्व ने ऐसी रफ्तार पकड़ी कि कुछ मौकों के छोड़कर आज तक फर्राटे भर रही है।
मोदी युग में फर्राटे भर रहा भंडार
ग्राफ एक और महत्वपूर्ण बात की ओर इशारा कर कर रहा है- यह कि 2014 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में दोबारा पांच साल पूरा करने वाली गैर-कांग्रेसी सरकार बनी तो देश के विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि ने और रफ्तार पकड़ ली। सिलसिला आगे बढ़ता गया और बढ़ ही रहा है। अब हमारे पास तीसरा सबसे बड़ा वैश्विक विदेशी मुद्रा भंडार है। भारत पहले ही विदेशी मुद्रा भंडार के मामले में रूस और दक्षिण कोरिया से आगे निकल गया था। अब हम चीन और जापान के बाद तीसरे स्थान पर पहुंच गए हैं।
आखिर विदेशी मुद्रा का इतना महत्व क्यों?
लेकिन, सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर विदेशी मुद्रा भंडार की इतनी दरकार है ही क्यों? जवाब है कि हमें कच्चा तेल समेत कई वस्तुएं विभिन्न देशों से आयात करनी पड़ती हैं। चूंकि अंतरराष्ट्रीय कारोबार के लिए लेनदेन की मुद्रा अमेरिकी डॉलर ही है, इसलिए अगर डॉलर नहीं हो तो जिस देश से जिस कीमत का सामान खरीद रहे हैं, उसकी कीमत किस मुद्रा से चुकाएंगे? और, अगर आपके पास कीमत चुकाने के लिए करेंसी नहीं है तो कोई आपको सामान क्यों देगा? तो एक बात तो सामान्य है कि हमें दूसरे देशों से वस्तुओं के आयात के लिए विदेशी मुद्रा भंडार की जरूरत पड़ती है। स्पष्ट है कि जितना बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार, अंतरराष्ट्रीय बाजार में उतनी ज्यादा खरीद की क्षमता। कहा जा रहा है कि अब भारत के पास इतना बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार हो चुका है कि इससे करीब ढाई साल तक की जरूरतों के सामान आयात किए जा सकते हैं।
विदेशी मुद्री की कमाई-खर्च और चालू खाता का हिसाब
एक और सवाल काफी महत्वपूर्ण है कि आखिर हमारे पास विदेशी मुद्रा आती कहां से है? जवाब आसान है- हम भी तो बहुत सारी वस्तुएं निर्यात करते हैं। जब हम किसी देश को कुछ बेचते हैं तो बदले में हमें भी तो अमेरिकी डॉलर ही मिलता है। यही वजह है कि हर देश आयात से ज्यादा निर्यात करना चाहता है ताकि उसके पास खर्च से ज्यादा डॉलर की आमदनी हो।
दरअसल, आयात के लिए खर्च और निर्यात से हुई डॉलर की आमदनी के अंतर को चालू खाता घाटा (Current Account Deficit) या चालू खाता अधिशेष (Current Account Surplus) कहा जाता है। चालू खाता की स्थिति से किसी देश की आर्थिक ताकत का भी अंदाजा लगाया जाता है। अगर चालू खाता घाटा बढ़ जाए तो समझिए कि आमदनी के मुकाबले डॉलर का खर्च बढ़ रहा है।