अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार खिलाड़ी

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार खिलाड़ी
भारत टीम के पूर्व हेड कोच रवि शास्त्री (Ravi Shastri) ने राहुल द्रविड़ (Rahul Dravid) की राय 'भारतीय खिलाड़ियों को विदेशी लीग में खेलने की कोई आवश्यकता नहीं है' का समर्थन किया है.
Chocolate Sacred Trident: हाल ही में वायरल एक पेस्ट्री शेफ का कमाल का वीडियो सोशल मीडिया पर हर किसी का ध्यान अपनी ओर खींच रहा है, जिसमें शेफ को चॉकलेट से त्रिशूल जैसी आकृति बनाते देखा जा रहा है, जो दिखने में हॉलीवुड फिल्म 'एक्वामन' के सेक्रेड ट्राइडेंट के डिजाइन जैसा ही लग रहा है.
Bangalore Airport IPO: बेंगलुरु इंटरनेशनल एयरपोर्ट 2008 में खुला और इस वर्ष जून तक इसने 250 मिलियन से अधिक लोगों का स्वागत किया. बेंगलुरु एयरपोर्ट 61 घरेलू और 14 विदेशी गंतव्यों के लिए सेवाएं प्रदान करता है. बेंगलुरु एयरपोर्ट बेंगलुरु एयरपोर्ट आईपीओ
Dollar Vs Rupee : विदेशी मुद्रा व्यापारियों ने कहा कि मजबूत अमेरिकी खुदरा बिक्री के आंकड़ों के बाद अमेरिकी करेंसी मजबूत हुई, जो धीमी अर्थव्यवस्था के बावजूद लचीली खपत की ओर इशारा करती है. Rupee
Dollar Vs Rupee : अंतर-बैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में डॉलर के मुकाबले रुपया 81.18 के भाव पर मजबूती के साथ खुला और थोड़ी ही देर में यह 81.14 के स्तर तक भी पहुंच गया.
T20 World Cup 2022: वेस्टइंडीज को 2012 और 2016 में टी20 विश्व कप का खिताब दिलाने वाले सैमी ने कहा कि इंग्लैंड को उसके खिलाड़ियों के विदेशी लीग विशेषकर ऑस्ट्रेलिया की बिग बैश में खेलने का फायदा मिला.
आज सुबह 11:20 बजे के करीब सेंसेक्स 0.18% के नुकसान के साथ 61,672.90 के स्तर पर ट्रेड कर रहा है जबकि निफ्टी 0.07 फीसदी की गिरावट के साथ 18,45.25 पर कारोबार करता दिख रहा है. सेंसेक्स की कंपनियों में पावर ग्रिड, टाटा स्टील, कोटक महिंद्रा बैंक, एचसीएल टेक्नोलॉजीज, महिंद्रा एंड महिंद्रा और अल्ट्राटेक सीमेंट लाभ में थे.
भागवत ने कहा कि आयुर्वेद के शुद्धतम रूप का उपयोग किया जाना चाहिए ताकि इसे अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिले. सोनोवाल ने कहा कि पिछले सात वर्षों से आयुर्वेद को अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिल रही है.
स्टीफन फ्लेमिंग (Stephen अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार खिलाड़ी Fleming) ने भारतीय टीम को टी20 विश्व कप (T20 World Cup) के बाद विदेशी लीग भी खेलने की सलाह दे डाली है.
India | Reported by: मुकेश सिंह सेंगर, Edited by: श्रावणी शैलजा |शुक्रवार नवम्बर 11, 2022 07:35 PM IST
पत्थर की मूर्ति को पुरावशेष और कला खजाना अधिनियम, 1972 के तहत जब्त किया गया है. अब इस अधिनियम से संबंधित और अनिवार्य आगे की कार्रवाई की जा रही है.
रुपये में कमजोरी की वजह से सोना महंगा, इंटरनेशनल तेजी से चांदी में बंपर उछाल
घरेलू अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार खिलाड़ी सराफा बाजार में सोना 478 रुपये प्रति 10 ग्राम तक महंगा हो गया। वहीं चांदी के रेट में भी 932 रुपये प्रति किलोग्राम का उछाल दर्ज किया गया। कारोबारियों अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार खिलाड़ी के मुताबिक, रुपये में कमजोरी तथा इंटरनेशनल तेजी की वजह से घरेलू सराफा तेज रहा।
नई दिल्ली (पीटीआई)। देश की राजधानी नई दिल्ली में सोमवार को सोने का भाव 478 रुपये उछल कर 49,519 रुपये प्रति 10 ग्राम के स्तर पर पहुंच गया। एचडीएफसी सिक्योरिटीज के मुताबिक, अंतरराष्ट्रीय बाजार में रातोंरात तेजी की वजह से घरेलू सराफा बाजार में उछाल आया। पिछले कारोबारी सत्र में सोने का सौदा 49,041 रुपये प्रति 10 ग्राम के भाव पर किया गया।
इंटरनेशनल मार्केट में सोना 1,857 डाॅलर प्रति औंस
घरेलू सराफा बाजार में सोमवार को चांदी का रेट 932 रुपये उछल कर 63,827 रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर पर पहुंच गया। पिछले कारोबारी सत्र में चांदी का सौदा 62,895 रुपये प्रति किलोग्राम के भाव पर किया गया था। अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने का सौदा मामूली रूप से फिसल कर 1,857 डाॅलर प्रति औंस के स्तर पर आ गया। वहीं चांदी का रेट 23.02 डाॅलर प्रति औंस के स्तर पर स्थिर बना रहा।
दिल्ली के हाजिर बाजार में सोना 478 रुपये महंगा
मुद्रा बाजार में सोमवार को अमेरिकी डाॅलर की तुलना में भारतीय रुपया 23 पैसे कमजोर रहा। एक डाॅलर की कीमत 75.59 रुपये रही। एचडीएफसी सिक्योरिटीज में सीनियर कमोडिटी एनालिस्ट तपन पटेल ने कहा कि दिल्ली के हाजिर बाजार में 24 कैरेट सोने का भाव 478 रुपये महंगा हो गया। कोमेक्स में रातोंरात सोने में तेजी और रुपये में कमजोरी की वजह से सोने के भाव में बढ़ोतरी हुई।
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार खिलाड़ी
बिज़नेस न्यूज डेस्क - वैश्विक विदेशी मुद्रा भंडार दुनिया भर में तेजी से घट रहा है। इससे एशिया की उभरती अर्थव्यवस्थाओं के सामने एक बड़ी समस्या खड़ी हो रही है। ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल दुनिया के करेंसी रिजर्व में रिकॉर्ड 1 ट्रिलियन डॉलर की गिरावट आई है। विश्व मुद्रा भंडार लगभग 1 ट्रिलियन डॉलर या 7.8% गिरकर 12 ट्रिलियन डॉलर हो गया। 2003 के बाद यह सबसे बड़ी गिरावट है। विश्व के मुद्रा भंडार में गिरावट का सबसे बड़ा कारण अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अन्य देशों की मुद्राओं का कमजोर होना है। हाल ही में, यूरो और येन जैसी अन्य आरक्षित मुद्राओं के मुकाबले डॉलर दो दशकों में अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है। इस समस्या का मुकाबला करने के लिए, भारत और चेक गणराज्य जैसे कई देशों के केंद्रीय बैंक अपनी मुद्राओं का समर्थन करने के लिए आवश्यक कदम उठा रहे हैं। कई केंद्रीय बैंक अपनी मुद्राओं की गिरावट को रोकने के लिए बाजार में हस्तक्षेप कर रहे हैं। इन देशों को मुद्रा बाजार में अपने विदेशी मुद्रा भंडार से डॉलर बेचने के लिए मजबूर किया जाता है। जिससे इन देशों के खजाने दिन-ब-दिन खाली होते जा रहे हैं। मुद्राओं की रक्षा के लिए भंडार का उपयोग करने की प्रथा कोई नई बात नहीं है। जब विदेशी पूंजी का प्रवाह होता है, तो केंद्रीय बैंक डॉलर खरीदते हैं और मुद्रा के विकास को धीमा करने के लिए अपने भंडार का निर्माण करते हैं। बुरे समय में, वे पूंजी की कमी को रोकने के लिए भंडार बढ़ाते हैं।
उदाहरण के लिए, भारत का विदेशी मुद्रा भंडार इस वर्ष 96 अरब डॉलर गिरकर 538 अरब डॉलर रह गया। देश के केंद्रीय बैंक ने कहा कि वैश्विक विकास के कारण रुपये की विनिमय दर में गिरावट को रोकने के लिए जारी प्रयासों के बीच विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट आई है। यह अप्रैल से वित्तीय वर्ष के दौरान भंडार में गिरावट का 67 प्रतिशत है। रुपया इस साल डॉलर के मुकाबले करीब 9 फीसदी कमजोर हुआ है और पिछले महीने रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया है। डॉयचे बैंक एजी के मुख्य अंतरराष्ट्रीय रणनीतिकार एलन रस्किन ने कहा, "कई केंद्रीय बैंकों के पास अभी भी हस्तक्षेप जारी रखने की पर्याप्त शक्ति है।" भारत का विदेशी भंडार अभी भी 2017 के स्तर से 49% अधिक है और 9 महीने के आयात का भुगतान करने के लिए पर्याप्त है। लेकिन कई देशों के लिए वे तेजी से भाग रहे हैं। इस साल 42% गिरने के बाद, पाकिस्तान का 14 बिलियन डॉलर का भंडार तीन महीने के आयात को कवर करने के लिए पर्याप्त नहीं है।
संकट बनती आभासी मुद्रा
आभासी मुद्रा।
आलोक पुराणिक
मार्च 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने आभासी मुद्रा (क्रिप्टो करंसी) पर जो विस्तृत फैसला दिया था, उसका सार यह था कि इसका कारोबार भारत में कानूनी है या गैरकानूनी, यह तय सरकार करे। पर सरकार अभी तक यह तय नहीं कर सकी है। दो साल बाद भी इस आभासी मुद्रा की वैधानिक स्थिति का हाल यह है कि अभी सिर्फ यही तय किया जा सका है कि इस पर तीस प्रतिशत की दर से कर लगना चाहिए।
वित्त वर्ष 2022-23 का बजट आने के बाद यह सवाल खड़ा हो गया है कि आभासी मुद्रा (क्रिप्टो करंसी) को लेकर बजट में भ्रम दूर किए गए हैं या बढ़ाए गए हैं। बजट में मोटे तौर पर यह कहा गया है कि इस आभासी मुद्रा के लेनदेन से हुई आय पर तीस प्रतिशत का कर लगेगा। इस घोषणा के बाद इसे लेकर कुछ निवेशक आश्वस्त हो गए हैं कि अब तो यह पूरे तौर पर कानूनी होने जा रही है। आभासी मुद्रा में निवेशक बढ़ रहे हैं, ऐसे समाचार भी बजट के बाद आए। लेकिन वास्तविक स्थिति एकदम अलग है।
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आभासी मुद्रा अभी कोई वास्तविक मुद्रा है ही नहीं। मुद्रा होने का मतलब है अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार खिलाड़ी कि उसे स्वीकार करने की अनिवार्यता हो, यानी जिसे वह दी जाए, वह उसे स्वीकार करने के लिए कानूनी तौर पर बाध्य हो। भारत में अगर कोई किसी को पांच सौ रुपए देता है तो वह उसे स्वीकार करने से इनकार नहीं कर सकता। यह कानूनी बाध्यता है और यही भारतीय रुपए को कानूनी मुद्रा बनाती है। पर क्रिप्टो करंसी जैसी आभासी मुद्रा को लेकर फिलहाल ऐसी कोई बाध्यता नहीं है। क्रिप्टो करंसी के साथ ‘करंसी’ शब्द कुछ ऐसे जुड़ गया है, जैसे ब्राउन शुगर के साथ ‘शुगर’। पर ब्राउन शुगर को शुगर यानी चीनी का दर्जा तो नहीं दिया जा सकता। आभासी मुद्रा का हाल भी यही है कि इसके नाम में ‘करंसी’ है, बाकी वास्तविक मुद्रा का इससे कोई लेना देना नहीं है।
इस आभासी मुद्रा के लेनदेन से हुई आय को कर योग्य बना दिया गया है। सरकार फिलहाल यह कहना चाहती है कि ‘क्रिप्टो करंसी’ है क्या, हमें नहीं पता। हम तय भी नहीं कर पा रहे हैं अभी। पर इसके लेनदेन से जो आय हो रही है, उसे कर के दायरे लाना हमारे हित में है, तो हम इसे कर योग्य बना रहे हैं और यह कर तीस प्रतिशत की दर पर लगाया गया है।
आयकर की उच्चतम दर है तीस प्रतिशत, इसी दर पर इस आभासी मुद्रा से हुई आय पर कर लगेगा। निश्चय ही आयकर की दर यह उच्चतम दर है। पर सवाल यह है कि आभासी मुद्रा पर उच्चतम दर से कर लगाना उचित है या नहीं है। करों को लगाने का औचित्य कुछ आधारों पर तय किया जाता है। पर आभासी मुद्रा को लेकर कई सवाल हैं जैसे- क्या इसमें निवेश उत्पादक गतिविधि है, क्या इससे अर्थव्यवस्था में उत्पादकता बढ़ती है, क्या इससे नए उद्यमों को पूंजी मिलती है, क्या इससे व्यापक तौर पर गुणवत्ता वाला रोजगार मिलता है.. आदि।
आभासी मुद्रा से किसी उद्यम को नई पूंजी नहीं मिलती। शेयर बाजारों का एक योगदान होता है कि नए कारोबार को पूंजी मिलती है। पुराने कारोबारों को विस्तार के लिए पूंजी मिलती है। नए शेयरों को जारी करके नए कारोबारों को पूंजी उठाने में मदद मिलती है। जबकि आभासी मुद्रा बाजार से ऐसी कोई नई पूंजी किसी कारोबार को नहीं मिलती। यानी नई पूंजी तैयार करने में आभासी मुद्रा का कोई योगदान नहीं है।
आभासी मुद्रा मूलत: जुए की किस्म का लेनदेन है, जिसका कोई ठोस और कानूनी आधार नहीं है। शेयरों के भाव ऊपर जाते हैं, नीचे जाते हैं, क्योंकि उनकी कंपनियों से जुड़ी आय संपत्तियों में उतार-चढ़ाव होता है। पर आभासी मुद्रा से जुड़ा ऐसा कोई कारक नहीं है। क्रिप्टो करंसी यानी आभासी मुद्रा है क्या, दरअसल यह भी साफ नहीं है। शेयर के पीछे एक कंपनी होती है, अच्छी या बुरी जैसी भी हो। पर आभासी मुद्रा के पीछे कौन है, यह किसी को साफ तौर पर नहीं पता। यह बड़ा भ्रम है। सट्टे बाजी कई आधारहीन बातों पर चलती है। जैसे आइपीएल के मैचों में सट्टा इस बात पर लगता है कि मैदान में फलां खिलाड़ी जब आएगा, तो पहले उसका दाहिना पैर आएगा या बायां पैर आएगा। इसमें लाखों को वारे न्यारे हो जाते हैं। पर यह नहीं कहा जा सकता है कि यह सब खेल का हिस्सा है।
आभासी मुद्रा अगर अर्थव्यवस्था में उत्पादकता नहीं बढ़ा रही है, तो इस पर तीस प्रतिशत का कर लगाना गलत नहीं ठहराया जा सकता। सरकार करों में रियायत उन उद्योगों को दे सकती है कि जिनमें व्यापक स्तर पर रोजगार पैदा हो रहा हो। पर आभासी मुद्रा के धंधे को तो ऐसा उद्यम नहीं माना जा सकता। यूं तकनीकी कारणों से कई बार जुए को भी उद्यम माना जा सकता है। एक अनुमान है कि इस आभासी मुद्रा में करीब अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार खिलाड़ी साढ़े छह लाख करोड़ रुपए का निवेश भारतीय कर चुके हैं। इसमें लगातार आय क्यों होगी, इसका तार्किक जवाब किसी के पास नहीं है।
इसलिए यह जुए से ज्यादा कुछ नहीं है। जुए में कुछ लोगों ने कमा लिया है, सिर्फ इसलिए तो जुए को राष्ट्र के लिए जरूरी गतिविधि घोषित नहीं किया जा सकता! मार्च 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने आभासी मुद्रा (क्रिप्टो करंसी) पर जो विस्तृत फैसला दिया था, उसका सार यह था कि इसका कारोबार भारत में कानूनी है या गैर कानूनी, यह तय सरकार करे। पर सरकार अभी तक यह तय नहीं कर सकी है।
दो साल बाद भी इस आभासी मुद्रा की वैधानिक स्थिति का हाल यह है कि अभी सिर्फ यही तय किया जा सका है कि इस पर तीस प्रतिशत की दर से कर लगना चाहिए। जब सरकार कर वसूली में जल्दी दिखा सकती है, तो फिर ऐसी ही तत्परता नियमों के निर्माण में भी होनी चाहिए। तमाम लोग ऐसी आभासी मुद्रा में बड़ी रकम लगा चुके हैं, जिसकी परिभाषा सरकार को भी नहीं पता। अभी तो इस आभासी मुद्रा की परिभाषा पर काम हो रहा है। यह हास्यास्पद स्थिति ही है।
अब मोटे तौर पर अनुमान यह है कि आभासी मुद्रा को पूरे तौर पर अवैध घोषित नहीं किया जाएगा। इससे कर वसूली उच्चतम स्तर पर की जाएगी। तो अब यह सवाल उठ खड़ा होगा कि क्या फिर इसमें पैसा लगाना आम निवेशक और छोटे निवेशक के लिए सुरक्षित है? इस सवाल का जवाब वही है जो शेयरों के निवेश के संबंध में दिया जाता है कि जोखिम बहुत है। जोखिम समझ कर काम करना जरूरी है। शेयर बाजारों से भी नियमित अंतराल के बाद करुण क्रंदन आता है कि हाय, रकम डूब गई। छोटा निवेशक मर गया। छोटा निवेशक अगर लालची हो जाएगा, तो उसका मरना तय है।
आम निवेशक सिर्फ लालची नहीं, अज्ञानी भी होता है। शेयर बाजार में भी लोग डूबते हैं, फिर बताते हैं कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार खिलाड़ी उन्हें कोई बता गया था कि दो महीने में लगाई गई रकम दोगुनी हो जाती है। तर्क यह नहीं बताता उन्हें कि अगर कहीं दो महीनों में रकम दो गुनी हो सकती है, तो दो महीनों में जीरो भी हो सकती है। लालच और अज्ञान अगर मिल जाएं, तो फिर बहुत ही घातक परिणाम आते हैं। जब शेयर बाजार लगातार ऊपर जाते हैं, तब छोटे निवेशक तेज गति से बाजार में आते हैं, तब पहले के ज्ञानी निवेशक बाजार से निकल रहे होते हैं। ज्ञानी किस्म के लालची निवेशक बड़े निवेशक होते हैं, वे खतरा देख कर पहले ही भाग खड़े होते हैं। शेयर बाजार में सबसे ज्यादा छोटे और अज्ञानी निवेशक ही डूबते हैं, जिन्हें निवेश की एबीसीडी भी पता नहीं होती।
आभासी मुद्रा में निवेश फिलहाल जुए में रकम लगाने से ज्यादा नहीं है। सरकार को जल्दी से जल्दी इससे जुड़े सारे नियम बना देने चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के दो साल बाद भी अगर इस मुद्दे को लेकर एक स्पष्टता नहीं है, तो इससे यह साफ होता है अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार खिलाड़ी कि सरकार के नीतिगत रुख में या तो भ्रम है या शिथिलता है या फिर दोनों ही हैं।
कंगाली के कगार पर पाकिस्तान! राजनीतिक उथल-पुथल के बीच आर्थिक संकट और गहराया
राजनीतिक उथल-पुथल और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के साथ बातचीत को लेकर अनिश्चितता के बीच पाकिस्तान का आर्थिक संकट गहराता जा रहा है।
राजनीतिक उथल-पुथल और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के साथ बातचीत को लेकर अनिश्चितता के बीच पाकिस्तान का आर्थिक संकट गहराता जा रहा है। डॉन न्यूज ने अनुसंधान फर्म आरिफ हबीब लिमिटेड द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि क्रेडिट डिफाल्ट स्वैप (सीडीएस) एक दिन पहले के 56.2 प्रतिशत से बढ़कर बुधवार को 75.5 प्रतिशत हो गया।
वाशिंगटन में आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि पिछले हफ्ते पाकिस्तान और आईएमएफ के बीच बातचीत के कार्यक्रम में बदलाव किया गया था। हालांकि मीडिया रिपोर्ट ने दावा किया गया है कि नवंबर की शुरुआत में शुरू होने वाली वार्ता को इस महीने के तीसरे सप्ताह तक के लिए स्थगित कर दिया गया है।
इन रिपोर्टों के अनुसार पाकिस्तान द्वारा पेट्रोलियम उत्पादों पर बिक्री कर को समायोजित करने की अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करने और इस वर्ष की शुरुआत में हुए ऋण समझौते के तहत आवश्यक उपाय करने के बाद वार्ता फिर शुरू होगी।
लेकिन आधिकारिक सूत्रों ने डॉन न्यूज को बताया कि पिछले महीने पाकिस्तान में बाढ़ से हुए नुकसान पर विश्व बैंक की रिपोर्ट जारी होने के बाद वार्ता को पुनर्निर्धारित किया गया है। पाकिस्तान 5 दिसंबर को पांच साल के सुकुक या इस्लामिक बांड की परिपक्वता के खिलाफ 1 अरब डॉलर का भुगतान करने वाला है।
डॉन की खबर के मुताबिक वित्त मंत्री इशाक डार ने सुकुक भुगतान के लिए आश्वासन दिया है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार आश्वासनों पर भरोसा करने के लिए तैयार नहीं है, क्योंकि देश की अर्थव्यवस्था संकट का सामना कर रही है।
सीडीएस में दिन-प्रतिदिन की वृद्धि एक गंभीर स्थिति को दर्शाता है। सरकार के लिए बांड या वाणिज्यिक उधारी के माध्यम से बाजारों से विदेशी मुद्रा जुटाना लगातार कठिन होता जा रहा है।
देश को अपने विदेशी दायित्वों को पूरा करने के लिए इस वित्तीय वर्ष में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार खिलाड़ी 32 बिलियन डॉलर से 34 बिलियन डॉलर की आवश्यकता है। वित्तीय विशेषज्ञों ने कहा कि शेष वित्तीय वर्ष में देश को अभी भी लगभग 23 बिलियन डॉलर की आवश्यकता है।