अभौतिक खाता

संस्कृति का अर्थ, परिभाषा, प्रकार एवं विशेषता | Culture - Meaning, Definition, Types and Characteristics
संस्कृति का अर्थ, परिभाषा, प्रकार एवं विशेषता | Culture - Meaning, Definition, Types and Characteristics
संस्कृति का अर्थ , परिभाषा , प्रकार एवं विशेषता
संस्कृति भाब्द का प्रयोग हम दिन-प्रतिदिन के जीवन में (अक्सर) निरन्तर करते रहते हैं। साथ ही संस्कृति शब्द का प्रयोग भिन्न-भिन्न अथों में भी करते हैं। उदाहरण के तौर पर हमारी संस्कृति में यह नहीं होता तथा पश्चिमी संस्कृति में इसकी स्वीकृति है। समाजशास्त्र विज्ञान के रूप में किसी भी अवधारणा का स्पष्ट अर्थ होता है जो कि वैज्ञानिक बोध को दर्शाता है। अतः " संस्कृति का अर्थ समाजशास्त्रीय अवधारणा के रूप में सीखा हुआ व्यवहार होता है। अर्थात कोई भी व्यक्ति बचपन से अब तक जो कुछ भी सीखता है , उदाहरण के तौरे पर खाने का तरीका बात करने का तरीका भाषा का ज्ञान , लिखना-पढना तथा अन्य योग्यताएँ , यह संस्कृति है।
संस्कृति का अर्थ अभौतिक खाता एवं परिभाषाएं
प्रसिद्ध मानवशास्त्री एडवर्ड बनार्ट टायलर ( 1832 1917) के द्वारा सन 1871 में प्रकाशित पुस्तक Primitive Culture में संस्कृति के संबंध में सर्वप्रथम उल्लेख किया गया है। टायलर मुख्य रूप से संस्कृति की अपनी परिभाषा के लिए जाने जाते हैं , इनके अनुसार , संस्कृति वह जटिल समग्रता है जिसमें ज्ञान विश्वास , कला आचार , कानून , प्रथा और अन्य सभी क्षमताओं तथा आदतों का समावेश होता है जिन्हें मनुष्य समाज के नाते प्राप्त कराता है। "
टायलर ने संस्कृति का प्रयोग व्यापक अर्थ में किया है। इनके अनुसार सामाजिक प्राणी होने के नाते व्यक्ति अपने पास जो कुछ भी रखता है तथा सीखता है वह सब संस्कृति है। इस परिभाषा में सिर्फ अभौतिक तत्वों को ही सम्मिलित किया गया है ।
बोगार्डस के अनुसार - ' किसी अभौतिक खाता समूह के काय करने और विचार करने के सभी तरीकों का नाम संस्कृति है।
हर्षकोविट्स के शब्दों में संस्कृति पर्यावरण का मानव निर्मित भाग है।
संस्कृति की विशेषताएं
● संस्कृति सीखा हुआ व्यवहार है संस्कृति एक सीखा हुआ व्यवहार है। इसे व्यक्ति अपने पूर्वजों के वंशानुक्रम के माध्यम से नहीं प्राप्त करता , बल्कि समाज में समाजीकरण की प्रक्रिया द्वारा सीखता है। यह सीखना जीवन पयन्त अर्थात जन्म से मृत्य तक अनवरत चलता रहता है। संस्कृति के अंतर्गत वे आदतें और व्यवहार के तरीके आते हैं , जिन्हें सामान्य रूप से समाज के सभी सदस्यों अभौतिक खाता द्वारा सीखा जाता है।
संस्कृति सामाजिक होती है। संस्कृति में सामाजिकता का गुण पाया जाता है। संस्कृति के अन्तर्गत पूरे समाज एवं सामाजिक सम्बन्धों का प्रतिनिधित्व होता है । कोई भी व्यवहार जब तक समाज के अधिकतर व्यक्तियों द्वारा नहीं सीखा जाता है तब तक वह संस्कृति नहीं कहलाया जा सकता ।
संस्कृति हस्तान्तरित होती है संस्कृति के इसी गुण के कारण ही संस्कृति एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाती है तो उसमें पीढ़ो-दर-पीढ़ी के अनुभव एवं सूझ जुड़ते जाते हैं। इससे संस्कृति में थोड़ा-बहुत परिवर्तन एवं परिमार्जन होता रहता है। संस्कृति के अभौतिक खाता इसी गुण के कारण मानव अपने पिछले ज्ञान एवं अनुभव के आधार पर आगे नई-नई चीजों का अविष्कार करता है।
संस्कृति मनुष्य द्वारा निर्मित है संस्कृति का तात्पय उन सभी तत्वों से होता है , जिनका निर्माण स्वयं मनुश्य ने किया है। उदाहरण के तौर पर हमारा धर्म , विश्वास , ज्ञान , आचार , व्यवहार के तरीके एवं तरह-तरह के आवश्यकताओं के साधन अर्थात कुर्सी , टेबल आदि का निर्माण मनुष्य द्वारा किया गया है।
संस्कृति मानव आवश्यकताओं की पूर्ति करती है संस्कृ - ति में मानव आवश्यकता पूर्ति करने का गुण होता है। संस्कृति की छोटी से छोटी इकाई भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मनुष्य की आव यकता पूर्ति करती है या पूर्ति करने में मदद करती है।
प्रत्यक समाज की अपनी विशिष्ट संस्कृति होती है प्रत्यक समाज की एक विशिष्ट संस्कृति होती है। हम जानते हैं कि कोई भी समाज एक विशिष्ट भौगोलिक एवं प्राकृतिक वातावरण लिय होता है। इसी के अनुरूप सामाजिक वातावरण एवं संस्कृति का निर्माण होता है।
संस्कृति के प्रकार
ऑगर्बन एवं निमकॉफ ने संस्कृति के दो प्रकारों की चर्चा की है- भौतिक संस्कृति एवं अभौतिक संस्कृति
1. भौतिक संस्कृति- भौतिक संस्कृति के अर्न्तगत उन सभी भौतिक एवं मूर्त वस्तुओं का समावे " होता है जिनका निर्माण मनुष्य के लिए किया है , तथा जिन्हें हम देख एवं छू सकते हैं। प्रो. बीयरस्टीड ने भौतिक संस्कृति के समस्त तत्वों को मुख्य 13 वर्गों में विभाजित करके इसे और स्पष्ट करने का प्रयास किया है-
8 कलात्मक वस्तुएँ
2. अभौतिक संस्कृति अभौतिक संस्कृति का तात्पय संस्कृति के उस पक्ष में होता है , जिसका कोई मूर्त रूप नहीं होता , बल्कि विचारों एवं विश्वासों कि माध्यम से मानव व्यवहार को नियन्त्रित नियमित एवं प्रभावी करता है । अभौतिक संस्कृति समाजीकरण एवं सीखने की प्रक्रिया द्वारा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तान्तरित होती रहती है। प्रो. बीयरस्टीड ने विचारों के कुछ समूह प्रस्तुत किय हैं-
निष्कर्ष
संस्कृति मानव का सीखा हुआ व्यवहार है कि न कि जन्मजात संस्कृति को दो भागों में बाँटा गया है- भौतिक संस्कृति एवं अभौतिक संस्कृति । भौतिक संस्कृति ही सभ्यता कही जाती है। साथ ही सभ्यता एवं संस्कृति में अन्तर किन-किन आधारों अभौतिक खाता पर हैं।
संस्कृति का अर्थ एवं परिभाषा |मानव संस्कृति का निर्माण |Meaning and definitions of culture in Hindi
संस्कृति का अर्थ एवं परिभाषा ,मानव संस्कृति का निर्माण
"संस्कृति" का अर्थ समाजशास्त्रीय अवधारणा के रूप में सामान्य परिचय
- संस्कृति शब्द का प्रयोग हम दिन-प्रतिदिन के जीवन में (अक्सर ) निरन्तर करते रहते हैं। साथ ही संस्कृति शब्द का प्रयोग भिन्न-भिन्न अर्थों में भी करते हैं। अभौतिक खाता उदाहरण के तौर पर हमारी संस्कृति में यह नहीं होता तथा पश्चिमी संस्कृति में इसकी स्वीकृति है। समाजशास्त्र विज्ञान के रूप में किसी भी अवधारणा का स्पष्ट अर्थ होता है जो कि वैज्ञानिक बोध को दर्शाता है।
- अतः "संस्कृति" का अर्थ समाजशास्त्रीय अवधारणा के रूप में सीखा हुआ व्यवहार होता है। अर्थात् कोई भी व्यक्ति बचपन से अब तक जो कुछ भी सीखता है, उदाहरण के तौरे पर खाने का तरीका , बात करने का तरीका , भाषा का ज्ञान लिखना पढना तथा अन्य योग्यताएँ , यह संस्कृति है।
मनुष्य का कौन सा व्यवहार संस्कृति है ?
मनुष्य के व्यवहार के कई पक्ष हैं
( अ) जैविक व्यवहार ( Biological behaviour) जैसे- भूख , नींद , चलना , दौड़ना ।
( ब) मनोवैज्ञानिक व्यवहार ( Psychological behaviour ) जैसे- सोचना , डरना , हँसना आदि
( स) सामाजिक व्यवहार ( Social behaviour ) जैसे- नमस्कार करना , पढ़ना-लिखना , बातें करना आदि ।
क्या आप जानते हैं कि मानव संस्कृति का निर्माण कैसे कर पाया ?
लेस्ली ए व्हाईट ( Leslie A White) के अनुसार मानव संस्कृति का निर्माण
लेस्ली ए व्हाईट ( Leslie A White) ने मानव में पाँच विशिष्ट क्षमताओं का उल्लेख किया हैं , जिसे मनुष्य ने प्रकृति से पाया है और जिसके फलस्वरूप वह संस्कृति का निर्माण कर सका है :
मानव में पाँच विशिष्ट क्षमता जिससे मानव संस्कृति का निर्माण हुआ
पहली विशेषता है-
- मानव के खड़े रहने की क्षमता , इससे व्यक्ति दोनों हाथों द्वारा उपयोगी कार्य करता है।
- मनुष्य के हाथों की बनावट है , जिसके फलस्वरूप वह अपने हाथों का स्वतन्त्रतापूर्वक किसी भी दिशा में घुमा पाता है और उसके द्वारा तरह-तरह की वस्तुओं का निर्माण करता है ।
- मानव की तीक्ष्ण दृष्टि , जिसके कारण वह प्रकृति तथा घटनाओं का निरीक्षण अवलोकन कर पाता है और तरह-तरह की खोज एवं अविष्कार करता है।
- विकसित मस्तिष्क , जिसकी सहायता से मनुष्य अन्य प्राणियों से अधिक अच्छी तरह सोच सकता है। इस मस्तिष्क के कारण ही वह तर्क प्रस्तुत करता है तथा कार्य कारण सम्बन्ध स्थापित कर पाता है।
- प्रतीकों के निर्माण की क्षमता । इन प्रतीकों के माध्यम से व्यक्ति अपने ज्ञान व अनुभवों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित कर पाता है। प्रतीकों के अभौतिक खाता द्वारा ही भाषा का विकास सम्भव हुआ और लोग अपने ज्ञान तथा विचारों के आदान-प्रदान में समर्थ हो पाये हैं। इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि प्रतीकों का संस्कृति के निर्माण , विकास , परिवर्तन तथा विस्तार में बहुत बड़ा योगदान है।
संस्कृति का अर्थ एवं परिभाषा
प्रसिद्ध मानवशास्त्री एडवर्ड बनार्ट टायलर ( 1832-1917 ) के द्वारा सन् 1871 में प्रकाशित पुस्तक Primitive Culture में संस्कृति के संबंध में सर्वप्रथम उल्लेख किया गया है।
टायलर द्वारा दी गयी संस्कृति की परिभाषा
टायलर मुख्य रूप से संस्कृति की अपनी परिभाषा के लिए जाने जाते हैं , इनके अनुसार ,
संस्कृति वह जटिल समग्रता है जिसमें ज्ञान , विश्वास , कला आचार , कानून , प्रथा और अन्य सभी क्षमताओं तथा आदतों का समावेश होता है जिन्हें मनुष्य समाज के नाते प्राप्त कराता है। "
- टायलर ने संस्कृति का प्रयोग व्यापक अर्थ में किया है। इनके अनुसार सामाजिक प्राणी होने के नाते व्यक्ति अपने पास जो कुछ भी रखता है तथा सीखता है वह सब संस्कृति है। इस परिभाषा में सिर्फ अभौतिक तत्वों को ही सम्मिलित किया गया है।
राबर्ट बीरस्टीड ( The Social Order) द्वारा संस्कृति की दी गयी परिभाषा
"संस्कृति वह संपूर्ण जटिलता है , जिसमें वे सभी वस्तुएँ सम्मिलित हैं , जिन पर हम विचार करते हैं , कार्य करते हैं और समाज के सदस्य होने के नाते अपने पास रखते हैं। "
इस परिभाषा में संस्कृति दोनों पक्षों भौतिक एवं अभौतिक को सम्मिलित किया गया है।
हर्षकोविट्स शब्दों में संस्कृति की परिभाषा
- हर्षकोविट्स ( Man and His Work) के शब्दों में संस्कृति पर्यावरण का मानव निर्मित भागहै।
- इस परिभाषा से स्पष्ट होता है कि पर्यावरण के दो भाग होते हैं पहला प्राकृतिक और दूसरा सामाजिक सामाजिक पर्यावरण में सारी भौतिक और अभौतिक चीजें आती हैं , जिनका निर्माण मानव के द्वारा हुआ है। उदाहरण के जिए कुर्सी , टेबल , कलम , रजिस्टर , धर्म , शिक्षा , ज्ञान , नैतिकता आदि। हर्षकोविट्स ने इसी सामाजिक पर्यावरण, जो मानव द्वारा निर्मित है , को संस्कृति कहा है।
बोगार्डस के अनुसार संस्कृति की परिभाषा
- " किसी समूह के कार्य करने और विचार करने के सभी तरीकों का नाम संस्कृति है।"
- इस पर आप ध्यान दें कि बोगार्डस ने भी बीयरस्टीड की तरह ही अपनी भौतिक एवं अभौतिक दोनों पक्षों पर बल दिया है।
मैलिनोस्की के संस्कृति की परिभाषा -
"संस्कृति मनुष्य की कृति है तथा एक साधन है , जिसके द्वारा वह अपने लक्ष्यों की प्राप्ति करता है। आपका कहना है कि "संस्कृति जीवन व्यतीत करने की एक संपूर्ण विधि ( Total Way of Life) है जो व्यक्ति के शारीरिक , मानसिक एवं अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति करती है।"
अभौतिक खाता
दोस्तो,चीन के दक्षिण-पश्चिमी छोर पर युननान प्रांत स्थित है।इस में हान लोगों के अलावा 25 अल्पसंख्य जातियों के लोग भी बसे हुए हैं।इस लिहास से वह विश्व में जातीय संस्कृतियों से संपन्न एक प्रमुख विशेष क्षेत्र माना गया है।लम्बे अरसे से इस प्रांत का प्रशासन इन संस्कृतियों के संरक्षण व विकास को भारी महत्व देता रहा है और संबंधित काम में उपलब्धियां हासिल हुई हैं।
युननान प्रांत के अभौतिक सांस्कृतिक विरासत संरक्षण-केंद्र के प्रभारी श्री नी चिंग-ख्वी ने कहा कि देश भर में लोकप्रिय `युननान की छाप` नामक एक भव्य गीतनृत्य में अल्पसंख्यक जातियों की जो विचित्र कलाएं दर्शाई गई हैं,उन से युननान प्रांत में जातीय संस्कृतियों के संरक्षण में प्राप्त उपलब्धियों की झलक मिल सकती है।युननान प्रांत में जातीय संस्कृतियों के संरक्षण के साथ-साथ इन संस्कृतियों से जुड़े उद्योग का भी जोरदार विकास किया जा रहा है।`युननान की छाप` नामक जैसे जातीय गीतनृत्य का व्यापारिक मंचन किया जाने और जातीय संस्कृतियों के संरक्षण को स्थानीय आर्थिक विकास से जोड़ा जाने की अर्थतंत्र व संस्कृति के साथ-साथ विकास में अच्छी भूमिका हो रही है।श्री नी चिंग-ख्वी ने कहाः
"अल्पसंख्यक जातियों की संस्कृतियों का संरक्षण करने का हमारा तरीका लचीला व विकासशील है और सामाजिक प्रगति के नियमों से मेल खाता है।संरक्षण का तरीका एक सा नहीं होना चाहिए यानि कि अपरिवर्तनीय नहीं होना चाहिए। अपरिवर्तनीय तरीका पुराना और पिछड़ा पड़ चुका है।अगर पुराने व पिछड़े पड़ चुके तरीके से संरक्षण किया जाए,तो समाज के विकास में बाधा बनी वस्तुओं का संरक्षण किया जाएगा।हमारे संरक्षण-काम का उद्देश्य जातीय संस्कृतियों का बेहतरीन विकास करना ही है। "
युननान प्रांत के अभौतिक सांस्कृतिक विरासत संरक्षण केंद्र के प्रभारी श्री नी चिंग-ख्वी ने यह भी जानकारी दी कि युननान प्रांत की सरकार स्थानीय अल्पसंख्यक जाकियों के इतिहासों व संस्कृतियों से जुड़े संसाधनों की खोज,संरक्षण व विकास के लिए अनेक नीतियां बनाई हैं।मिसाल के तौर पर मई 2002 में युननान प्रांत की जातीय परंपराओं व लोक संस्कृतियों के संरक्षण की नियमावलियां जारी की गईं।यह चीन में अपने तरह का पहला स्थानीय कानून-कायदा है।और इस से युननान में अल्पसंख्यक जातियों के सांस्कृतिक अवशेषों के संरक्षण और विकास का काम कानून सम्मत पटरी पर आ गया है।
युननान प्रांत ने चीन में अल्पसंख्यक जातियों की संस्कृतियों के संरक्षण के काम का सर्वेक्षण सब से पहले किया है।सर्वेक्षण से मालूम चला है कि पूरे प्रांत में अल्पसंख्यक जातियों के 10 हजार से अधिक किस्मों के कोई 1 लाख ऐतिहासिक ग्रंथ सुरक्षित हैं।इस के अलावा युननान प्रांत ने 660 लोक ललितकारों को 3 श्रेष्ठ श्रेणियों में बांटकर पुरस्कृत किया है और जातीय संस्कृतियों से जुडे 80 से अधिक पारिस्थितिकी संरक्षण गांव भी स्थापित किए हैं।इन कदमों से युननान में अल्पसंख्यक जातियों की संस्कृतियों के संरक्षण में कामयाहियां हासिल हुई हैं।
युननान का लीच्यांग नगर बहुत मशहूर है।800 वर्षों से पुराने इस नगर को सन् 1997 में विश्व सांस्कृतिक अवशेषों की नामसूचि में शामिल किया गया।तब से विभिन्न स्तरों की स्थानीय सरकारों और सामाजिक जगतों ने इस नगर के संरक्षण व प्रबंधन में कोई 50 करोड़ य्वान की धन-राशि निवेश की,जिस में से करीब 30 करोड़ य्वान का सीधे तौर पर नगर के जीर्णोद्वार व पुनः निर्माण में किया गया है।इन निवेश से प्राप्त आर्थिक मुनाफे ने इस प्राचीन नगर के पर्यटन-उद्योग के विकास को बड़ा बढावा दिया है।बीते एक दशक में पर्यटन-उद्योग से प्रेरणा लेकर इस नगर का आर्थिक व सामाजिक विकास भी तेजी से हुआ है।लीच्यांग नगर के संरक्षण व प्रबंधन ब्यूरो के प्रधान श्री ह शि-युंग के अनुसार अल्पसंख्यक जातियों की संस्कृतियों के संरक्षण व विकास के बीच रिश्तों का अच्छा निबटारा करना लीच्यांग प्राचीन नगर को तेजी से विकसिक करने की कुंजी है।उन्हों ने कहाः
"हम हमेशा से संरक्षण को प्रथम सिद्धांत मानते रहे हैं,फिर विकास व समुचित प्रयोग की सोच करते अभौतिक खाता हैं।विकास की प्रक्रिया में प्राप्त आर्थिक मुनाफे ने सांस्कृतिक अवशेषों के संरक्षण को बढ़ावा दिया है।यहां आर्थिक विकास और सांस्कृतिक संरक्षण एक दूसरे के पूरक हैं।दोनों का अच्छा चक्र बन गया है।संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों का मानना है कि इधर के वर्षों में लीच्यांग नगर में सांस्कृतिक अवशेषों के संरक्षण-काम और पर्यटन-उद्योग का साथ-साथ समंवयपूर्वक विकास किया गया है।
श्री ह शि-युंग ने कहा कि आइंदे हम सांस्कृतिक अवशेषों के संरक्षण में संबंधित कानून-कायदों और नियमावलियों का कड़ाई से पालन करते हुए प्रबंधन-काम को मानकीकृत बनाएंगे और वैज्ञानिक अनुसंधान व सेवा-स्तर की उन्नति में ज्यादा कोशिश करेगें। "
अल्कसंख्यक जातियों के सांस्कृतिक उद्योग के विकास के लिए युननान प्रांत की सरकार प्रात के सांस्कृतिक उद्योग-ग्रुपों को अंतरव्यवसायी व अंतरक्षेत्रीय कारोबार करने की प्रेरणा देती है।साथ ही उस ने बड़ी मात्रा में गैरसरकारी पूंजी को सांस्कृतिक क्षेत्र की ओर आकर्षित कराया है।वर्ष 2003 के बाद विख्यात ईनश्यांग कंपनी,पोल्यान पर्यटन व संस्कृति विकास कंपनी और फंगछी मीडिया संस्था जैसे अनेक गैरसरकारी सांस्कृतिक उद्योगधंधे युननान के सांस्कृतिक मंच पर प्रमुख भूमिका अदा कर रहे है।
चीन के प्रमथ आकर्षक प्राचीन कस्बा—हश्वुन युननान प्रांत में ही स्थित है।इस का संरक्षण गैरसरकारी सांस्कृतिक उद्योगधंधे—पोल्यान पर्यटन व संस्कृति विकास कंपनी द्वारा किया जा रहा है।इस कंपनी के महानिदेशक श्री वांग ता-सान के अनुसार हश्वुन प्राचीन कस्बे की परंपरागत संस्कृति के संरक्षण व विकास से अकेले इस कस्बे को ही नहीं,बल्कि आसपास के क्षेत्रों को भी लाभ मिला है।श्री वांग ता-सान ने कहाः
" सांस्कृतिक अवशेषों व जातीय संस्कृतियों के संरक्षण में गैरसरकारी उद्योगधंधों की भागीदारी से रोजगार के मौकों और कर-वसूली में बढोत्तरी हुई है।चीन के प्रथम आकर्षक प्राचीन कस्बा बनने के बाद हश्वनु में पर्यटन व संस्कृति के कार्य का बड़ा विकास हुआ है। और इस से स्थानीय लोगों की आय बहुत बढ़ गई है। "
पितृपक्ष विशेष : क्या मृत्यु के बाद सभी बनते हैं प्रेत, कैसा होता है आत्मा सफर?
मृत्यु तो एक दिन सभी की आनी है। गरुड़ पुराण में बताया गया है कि मृत्यु के बाद आत्मा जब शरीर से निकल जाती है तो कुछ समय तक अचेत स्थिति में रहती है। चेतना आने पर आत्मा अपने शरीर को देखकर मोहवश अपने परिवार और अपने शरीर को देखकर दुःखी होती रहती है और परिजनों से बात करना चाहती, फिर से अपने शरीर में लौटने की कोशिश करती है लेकिन शरीर में फिर से प्रवेश नहीं कर पाती है। इसके बाद यम के दूत आत्मा को अपने साथ तीव्र गति से लेकर यम के दरबार में पहुंचा देते हैं। यहां चित्रगुप्त और यम के सभासद व्यक्ति के कर्मों का लेखा-जोखा करके वापस परिजनों के पास पहुंचा देते हैं।
फिर लौटकर आती है आत्मा
यहां मृत व्यक्ति अभौतिक खाता की आत्मा मृत्यु के 12 दिनों तक प्रेतावस्था में परिवार वालों के बीच में रहती है और परिजनों द्वारा दिए गए पिंडदान को खाते हैं और दिए गए जल को पीते हैं जिससे अंगूठे के आकार का इनका अभौतिक शरीर तैयार होता है जिन्हें व्यक्ति के द्वारा जीवित अवस्था में किए गए कर्मों का फल भोगना होता है। इसी अभौतिक शरीर को यम के दूत 12वें दिन यमपास में बांधकर यममार्ग पर ले जाते हैं। गरुड़ पुराण में बताया गया है कि यममार्ग का सफर बहुत ही कठिन होता है। इस मार्ग पर व्यक्ति को उनके कर्मों के अनुसार कष्ट प्राप्त होता है। 12 महीने में 16 नगरों और कई नरकों को पार करके आत्मा यमलोक पहुंचती है।
आत्मा के लिए वो 12 दिन
गरुड़ पुराण में बताया गया है कि मृत्यु के बाद हर व्यक्ति को 12 दिनों के लिए प्रेत योनी में जाना होता है। यह 12 दिन मृत्यु को प्राप्त व्यक्ति की आत्मा को अभौतिक शरीर दिलाने के लिए होता है। यही अभौतिक शरीर पुण्य के प्रभाव से स्वर्ग और पाप के प्रभाव से नरकगामी होता है। कर्म भोगने वाले इस शरीर द्वारा कर्म के फल को भोग लिए जाने के बाद फिर से जीवात्मा को नया शरीर प्राप्त होता है। स्वर्ग गए लोग अपने पुण्य के प्रभाव से धनवान और सुखी परिवार में जन्म लेते हैं या अपने कर्मों से धनवान होते हैं।
मृत्यु के बाद आत्मा का सफर
गरुड़ पुराण जिसमें मृत्यु के बाद की स्थिति का वर्णन किया गया है, उसमें बताया गया है, जो लोग पुण्यात्मा होते हैं केवल वही भगवान विष्णु के दूतों द्वारा विष्णु लोक को जाते हैं। इन्हें प्रेत योनी में नहीं जाना होता है बाकी सभी लोगों को मृत्यु के बाद प्रेत योनी से गुजरना ही होता है। मृत्यु के बाद जब आत्मा को यमलोक लाया जाता है तो यम के दूत एक दिन में उस अभौतिक शरीर को एक दिन में 1600 किलोमीटर चलाते हैं। महीने में एक दिन मृत्यु तिथि के दिन आत्मा को ठहरने का मौका दिया जाता है।
इसलिए मृत्यु के बाद श्राद्ध तर्पण जरूरी
गरुड़ पुराण में बताया गया है कि मृत्यु तिथि पर व्यक्ति की मृत्यु के बाद पूरे एक साल तक अन्न जल का दान और तर्पण करना चाहिए। इन दिन किए गए अन्न दान और ब्राह्मण भोजन से यमदूतों और मृत व्यक्ति की आत्मा को बल मिलता है, जिससे वह आगे का सफर तय कर पाते हैं। जिन परिवारों में लोग ऐसा नहीं करते हैं उनके परिजन यममार्ग में कष्ट भोगते हैं और अपने परिवार के लोगों को शाप देते हैं, जिनसे पितृदोष लग जाता है और जीवन में कई तरह की परेशानियां आने लगती हैं।