निवेश योजना

व्यापार करने के लिए सबसे अच्छा कब है और कहां

व्यापार करने के लिए सबसे अच्छा कब है और कहां

गरीब आदमी को लोन कैसे मिलेगा

गरीब आदमी को लोन कैसे मिलेगा : आज के समय में गरीब नागरिकों का अक्सर यही सवाल होता है कि उन्हें लोन कैसे मिलेगा , कैसे वे लोग सरकारी लोन प्राप्त कर सकते हैं। तो आज हम इस आर्टिकल में बताएंगे कि गरीब आदमी को लोन कैसे मिलेगा कैसे वे काम ब्याज़ पर सरकारी योजना से लोन लेकर लाभ प्राप्त कर सकते हैं। यहाँ बताये जानकारी के अनुसार गरीब नागरिक अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए भी लोन ले सकते हैं और पर्सनल लोन ले सकते हैं। लोन के माध्यम से लोग अपनी जरूरतों को पूरा करते हैं , कई बार पैसे न होने के कारण गरीब परिवार के बच्चे पढ़ाई तक नहीं कर पाते। लेकिन लोन के माध्यम से वे अपनी जरूरतों को पूरी कर सकते हैं।

सरकार ने गरीबों को लोन देने के लिए कई योजनाएं भी शुरु किया है जिससे वे अपना बिजनेस भी कर सकते हैं , सरकारी योजनाओं में ऐसी सुविधा भी होती है जिससे गरीब नागरिक धीरे – धीरे लोन चूका सके। इसके साथ ही सरकारी योजनाओं से लोन लेने पर ब्याज भी कम लगता है जिससे गरीबों आदमी को लोन चुकाने में आसानी होती है। गरीब आदमी कितने प्रकार का लोन ले सकता है इसकी जानकारी हम आपको इस आर्टिकल में देंगे। सभी जानकारी लेने के लिए आप इस आर्टिकल का अंत तक अवलोकन करें और आसानी से लोन प्राप्त करें।

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गरीब आदमी को लोन कैसे मिलेगा ?

गरीबों के लिए एजुकेशन लोन

सरकार गरीबों को एजुकेशन लोन देते हैं जिससे गरीब नागरिक भी अच्छे से पढ़ाई कर सके और पैसों की कमी के कारण उन्हें पढ़ाई रोकनी न पड़े। सरकार उन्हें लोन चुकाने के लिए काफी समय भी देता है जिससे वे अपनी पढ़ाई पूरी करके लोन को धीरे – धीरे चूका सके। एजुकेशन लोन के माध्यम से सरकार स्टूडेंट्स को आर्थिक सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से शुरू किये हैं जिससे वे आगे बढ़ सके।

गरीबों के लिए मुद्रा लोन

सरकार प्रधानमंत्री मुद्रा लोन योजना को व्यापार के लिए लोन देने के लिए शुरू किये हैं जिससे गरीब आदमी भी अपना खुद का व्यापार कर सके। मुद्रा लोन योजना के माध्यम 50 हजार से लेकर 10 लाख तक का लोन लिया जा सकता है , इसके अंतर्गत तीन प्रकार का लोन मिलता है शिशु लोन , किशोर लोन और तरुण लोन। तो जो गरीब नागरिक इसके लिए आवेदन करना चाहता है वे इसके ऑफिशियल वेबसाइट में जाकर कर सकता है।

गरीबों के लिए पर्सनल लोन

गरीबों के लिए पर्सनल लोन भी बहुत अच्छा है इसमें लोन चुकाने का समय अधिक होता है जिससे नागरिक धीरे – धीरे आसानी से लोन चूका सकते हैं। इससे वे अपनी बच्चो की पढ़ाई और अपनी जरूरतों को पूरा कर सकते हैं। इस लोन को लेने के लिए आप किसी भी बैंक में जाकर जानकारी लेकर आवेदन कर सकते हैं।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न ( FAQ )

जी हाँ , ऐसी कई बैंक है जो गरीबों को सरकारी योजनाओं के माध्यम से लोन देते हैं। सरकारी योजना के लोन में गरीबों बहुत कम ब्याज लिया जाता है।

पीएम मुद्रा लोन योजना के माध्यम से गरीबों को 50 हजार से 10 लाख तक का लोन मिल सकता है।

जी हाँ , अब कोई भी नागरिक मोबाइल ऐप व्यापार करने के लिए सबसे अच्छा कब है और कहां के माध्यम से घर बैठे लोन ले सकते हैं। आजकल कई सारी मोबाइल ऐप है जो घर बैठे लोन प्रदान करते हैं।

गरीब आदमी को लोन कैसे मिलेगा , इसकी सभी जानकारी आपको इस आर्टिकल में विस्तार से मिल गया है जिससे आप कोई भी लोन आसानी से प्राप्त कर सकते हैं। पर्सनल लोन लेने के लिए आप किसी भी बैंक में जाकर उसकी जानकारी ले और पर्सनल लोन प्राप्त कर सकते हैं। ऊपर बताये गए सभी जानकारी के माध्यम से गरीब आदमी को व्यापार करने के लिए सबसे अच्छा कब है और कहां लोन मिल जायेगा जिससे गरीब आदमी अपनी जरूरतों को पूरा कर पाएंगे अपने बच्चो को पढ़ा सकते हैं।

हमने आपको गरीब आदमी को लोन कैसे मिलेगा इसकी सभी जानकारी इस आर्टिकल के माध्यम से दे दिया है उम्मीद है आपको सभी जानकारी अच्छे से समझ आई होगी। अगर आपको ऐसी और भी जानकारी लेना है तो आप इस वेबसाइट से ले सकते हैं यहाँ से आपको सरकारी योजनाओं की भी जानकारी मिलेगी। आर्टिकल के अवलोकन के बाद इसे शेयर अवश्य करें , धन्यवाद।

व्यापार घाटा कहीं देश की अर्थव्यवस्था को बिगाड़ न दे!

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अगर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन की मानें तो अर्थव्यवस्था में सब अच्छा ही अछा है। हमारी अर्थव्यवस्था के दुनिया में पांचवें स्थान पर होने के उत्साह में वे काफी कुछ दावे करने से नहीं चूकतीं। प्रत्यक्ष करों की वसूली में तीस फीसदी का उछाल और जीएसटी की वसूली के नित बढ़ते आँकड़े अर्थव्यवस्था का हाल ठीक होने के दावे को मजबूत करते हैं।

अब इसमें करखनिया सामानों का उत्पादन गिरने, महंगाई के चलते बिक्री कम होने तथा महंगाई और बेरोजगारी का हिसाब निश्चित रूप से शामिल नहीं है। छोटे और सूक्ष्म उद्योग धंधों की हालत और खराब हुई है जिसने रोजगार के परिदृश्य को ज्यादा खराब किया है। और इसमें अगर विदेश व्यापार की ताजा स्थिति और बढ़ते घाटे को जोड़ लिया जाए तो साफ लगेगा कि वित्त मंत्री सिर्फ अर्थव्यवस्था का उतना हिस्सा ही देखना और दिखाना चाहती हैं जो गुलाबी है।

बाजार में निवेश का आना कम होने और डालर की महंगाई को भी जोड़ लें तो हालत चिंता जनक लगने लगती है। यह सही है कि अभी वैश्विक मंडी की आहट भी सुनाई दे रही है और अधिकांश बड़े देशों की हालत भी खराब है लेकिन यह कहने से बेरोजगार लोगों या महंगाई से त्रस्त गृहणियों के जख्मों पर मरहम नहीं लगेगा।

वित्त मंत्री और सरकार के लोग चाहे जो दावे करें विदेश व्यापार का बढ़ता आकार और उससे भी ज्यादा तेजी से बढ़ता घाटा अर्थशास्त्र के सारे जानकारों को चिंतित किए हुए है। लगातार हर महीने आने वाले आँकड़े इन दोनों प्रवृत्तियों में वृद्धि ही दिखा रहे हैं जबकि अगस्त के आँकड़े बताते हैं कि घाटा दस साल का व्यापार करने के लिए सबसे अच्छा कब है और कहां रिकार्ड तोड़ चुका है।

अगस्त में यह 29 अरब डालर को छू चुका है और घाटे की प्रवृत्ति में बदलाव की कोई गुंजाइश नहीं दिखती। दुनिया भर में पेट्रोलियम पदार्थों की कीमत में आई नरमी बदलाव ला सकती थी लेकिन डालर के अस्सी रुपए तक पहुँचने से यह लाभ भी समाप्त सा हों रहा है।

इलेक्ट्रानिक सामानों के निर्यात में कुछ वृद्धि दिख रही है तो जेवरात और रत्नों का आयात उस पर भी पानी फेर रहा है। यह भी माना जाता है कि अचानक बिजलीघरों में कोयले के अकाल ने सरकार के हाथ पाँव फुला दिए थे। इस चक्कर में विदेश से काफी कोयला मंगा लिया गया जबकि अपने यहां सबसे बड़ा कोयला भंडार है। व्यापार संतुलन बिगाड़ने में इसका भी हाथ है। हाल के दिनों में करोना से उबरी दुनिया में रिफाइनिंग का काम बढ़ा था जिसका लाभ हमें भी मिला था। अब खबर आ रही है कि इस काम में भी गिरावट है और यह दस फीसदी तक है।

जाहिर है हमारा विदेश व्यापार का असंतुलन बढ़ ही सकता है, उसके सुधार के लक्षण नहीं हैं। यह अंदेशा अभी भी जारी यूक्रेन युद्ध और ताइवान पर तनातनी से बढ़ा ही है। पर निश्चित रूप से सबसे बड़ा प्रभाव कोरोना का ही रहा। जिसके चलते दुनिया भर में मांग कम हुई है। यूरोप और अमेरिका इस बार जिस तरह की परेशानी में हैं, और अमेरिकी फेडरल रिजर्व जिस तेजी से अपने रेट बढ़ा रहा है उसमें दुनिया भर के पूंजी बाजारों से पैसा गायब होने लगा है।

हमारा केन्द्रीय बैंक भी रेट बढ़ा रहा है। लेकिन सरकार एक सीमा से ज्यादा रेट बढ़ाने के पक्ष में नहीं है क्योंकि इससे महंगाई बढ़ने लगती है। पर असली दिक्कत हमारे माल की मांग काम होने से आई है और दुनिया के बाजारों के जल्दी सुधारने की उम्मीद नहीं की जा रही है। सामान महंगा होने और बेकारी बढ़ने के असर अपने बाजार पर भी है और जाहिर तौर से ये कारण करखनिया उत्पादन के गिरने के हैं।

अंतरराष्ट्रीय एजेंसी रायटर्स के एक सर्वेक्षण में यह बात सामने आई कि लगातार तीन तिहाई के आंकड़ों की दिशा, खाद्यान्न की कीमतों में वैश्विक उछाल और गिरते रुपए के चलते भारतीय व्यापार घाटा न सिर्फ एक दशक में सबसे ऊपर जाने वाला है बल्कि यह अर्थव्यवस्था के लिए संकट भी बनेगा। ये चीजें निवेशकों का भरोसा गिरा रही हैं। बाजार से पूंजी गायब दिखने की यह एक बड़ी वजह है।

दुनिया के 18 बड़े अर्थशास्त्रियों से पूछे सवाल पर आधारित यह सर्वेक्षण बताता है कि चालू खाते का घाटा आने वाले महीनों में सकल घरेलू उत्पादन, जीडीपी के पाँच फीसदी तक पहुँच सकता है। पिछली तिमाही अर्थात अप्रैल-जून में यह जीडीपी के 3.6 फीसदी तक चला गया था। जैसा पहले बताया जा चुका है अकेले अगस्त महीने का घाटा 29 अरब डालर का था। उससे पहले जुलाई का घाटा तीस अरब डालर व्यापार करने के लिए सबसे अच्छा कब है और कहां को छू गया था। अगर यह रफ्तार रही तो इन अर्थशास्त्रियों का अनुमान भी कम पड जाएगा। अगर हम जनवरी-मार्च के मात्र 13.4 अरब डालर पर नजर डालें तो अगस्त तक का रिकार्ड डरावना लगने लगेगा।

इस घाटे की भरपाई करनी ही होती है। इस काम में रिजर्व बैंक की सांस फूल रही है। डालर के मुकाबले गिरते रुपए को संभालने में भी उसे काफी सारा पैसा उतारना पड़ता है। इन दोनों कामों में कीमती विदेशी मुद्रा खर्च हों रही है और विदेशी मुद्रा का भंडार तेजी से नीचे आ रहा है। ये चीजें भी रुपए पर दबाव बढ़ा रही हैं और कमाई की गुंजाइश काम हुई है। सामान्य स्थिति में मुद्रा की कीमत गिरने का एक लाभ यह होता है कि आपके विदेश व्यापार में वृद्धि होती है। आपका सामान सस्ता होता है तो मांग बढ़ती है।

अभी दुनिया में, खासकर हमारा सामान (तैयार पोशाक, जेम-ज्वेलरी और इंजीनियरिंग का सामान) मांग न होने के चलते बिक ही नहीं रहा है। इलेक्ट्रानिक सामान बिक भी रहे हैं तो इंजीनियरिंग के सामान की बिक्री में अगस्त में ही पिछले साल की तुलना में 78 फीसदी की गिरावट आ गई है। उधर हमारा तेल का आयात बढ़ता ही जा रहा यही। पिछले साल की तुलना में बीते अगस्त में हमने 37 फीसदी ज्यादा पेट्रोलियम पदार्थों का आयात किया। आयात निर्यात बढ़ाने घटाने के और आँकड़े भी इसी दिशा को बताते हैं लेकिन सबसे बड़ा सच तो व्यापार घाटे के बेहिसाब बढ़ाने से दिखता है। सरकार सोई नहीं होगी लेकिन सारी दुनिया के आर्थिक हालात पर उसका वश चलता हों ऐसा भी नहीं है।

पीएमइंडिया

डॉ. मनमोहन सिंह

भारत के चौदहवें प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह विचारक और विद्वान के रूप में प्रसिद्ध है। वह अपनी नम्रता, कर्मठता और कार्य के प्रति प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते हैं।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितम्बर 1932 को अविभाजित भारत के पंजाब प्रान्त के एक गाँव में हुआ था। डॉ. सिंह ने वर्ष 1948 में पंजाब विश्वविद्यालय से मेट्रिक की शिक्षा पूरी की। उसके बाद उन्होंने अपनी आगे की शिक्षा ब्रिटेन के कैंब्रिज विश्वविद्यालय से प्राप्त की। 1957 में उन्होंने अर्थशास्त्र में प्रथम श्रेणी से ऑनर्स की डिग्री अर्जित की। इसके बाद 1962 में उन्होंने ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय के नूफिल्ड कॉलेज से अर्थशास्त्र में डी.फिल किया। उन्होंने अपनी पुस्तक “भारत में निर्यात और आत्मनिर्भरता और विकास की संभावनाएं” में भारत में निर्यात आधारित व्यापार नीति की आलोचना की थी।
पंजाब विश्वविद्यालय और दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में डॉ. सिंह ने शिक्षक के रूप में कार्य किया जो उनकी अकादमिक श्रेष्ठता दिखाता है। इसी बीच में कुछ वर्षों के लिए उन्होंने यूएनसीटीएडी सचिवालय के लिए भी कार्य किया। इसी के आधार पर उन्हें 1987 और 1990 में जिनेवा में दक्षिण आयोग के महासचिव के रूप में नियुक्ति किया गया।
1971 में डॉ. सिंह वाणिज्य मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार के रूप में शामिल हुए। 1972 में उनकी नियुक्ति वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार के रूप में हुई। डॉ. सिंह ने वित्त मंत्रालय के सचिव; योजना आयोग के उपाध्यक्ष; भारतीय रिजर्व बैंक के अध्यक्ष; प्रधानमंत्री के सलाहकार; विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया।
डॉ सिंह ने 1991 से 1996 तक भारत के वित्त मंत्री के रूप में कार्य किया जो स्वतंत्र भारत के आर्थिक इतिहास में एक निर्णायक समय था। आर्थिक सुधारों के लिए व्यापक नीति के निर्धारण में उनकी भूमिका को सभी ने सराहा है। भारत में इन वर्षों को डॉ. सिंह के व्यक्तित्व के अभिन्न अंग के रूप में जाना जाता है।
डॉ. सिंह को मिले कई पुरस्कारों और सम्मानों में से सबसे प्रमुख सम्मान है – भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण(1987); भारतीय विज्ञान कांग्रेस का जवाहरलाल नेहरू जन्म शताब्दी पुरस्कार (व्यापार करने के लिए सबसे अच्छा कब है और कहां 1995); वर्ष के वित्त मंत्री के लिए एशिया मनी अवार्ड (1993 और 1994); वर्ष के वित्त मंत्री के लिए यूरो मनी अवार्ड (1993), कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय (1956) का एडम स्मिथ पुरस्कार; कैम्ब्रिज के सेंट जॉन्स कॉलेज में विशिष्ट प्रदर्शन के लिए राइट पुरस्कार (1955)। डॉ. सिंह को जापानी निहोन किजई शिम्बुन एवं अन्य संघो द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। डॉ. सिंह को कैंब्रिज एवं ऑक्सफ़ोर्ड तथा अन्य कई विश्वविद्यालयों द्वारा मानद उपाधियाँ प्रदान की गई हैं।
डॉ. सिंह ने कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों और सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। उन्होंने 1993 में साइप्रस में राष्ट्रमंडल प्रमुखों की बैठक में और वियना में मानवाधिकार पर हुए विश्व सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया है।
अपने राजनीतिक जीवन में डॉ. सिंह 1991 से भारतीय संसद के उच्च सदन (राज्य सभा) के सदस्य रहे जहाँ वे 1998 से 2004 तक विपक्ष के नेता थे। डॉ. मनमोहन सिंह ने 2004 के आम चुनाव के बाद 22 मई 2004 को प्रधानमंत्री के रूप के शपथ ली और 22 मई 2009 को दूसरी बार प्रधानमंत्री बने।
डॉ. सिंह और उनकी पत्नी श्रीमती गुरशरण कौर की तीन बेटियां हैं।

पीएमइंडिया

डॉ. मनमोहन सिंह

भारत के चौदहवें प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह विचारक और विद्वान के रूप में प्रसिद्ध है। वह अपनी नम्रता, कर्मठता और कार्य के प्रति प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते हैं।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितम्बर 1932 को अविभाजित भारत के पंजाब प्रान्त के एक गाँव में हुआ था। डॉ. सिंह ने वर्ष 1948 में पंजाब विश्वविद्यालय से मेट्रिक की शिक्षा पूरी की। उसके बाद उन्होंने अपनी आगे की शिक्षा ब्रिटेन के कैंब्रिज विश्वविद्यालय से प्राप्त की। 1957 में उन्होंने अर्थशास्त्र में प्रथम श्रेणी से ऑनर्स की डिग्री अर्जित की। इसके बाद 1962 में उन्होंने ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय के नूफिल्ड कॉलेज से अर्थशास्त्र में डी.फिल किया। उन्होंने अपनी पुस्तक “भारत में निर्यात और आत्मनिर्भरता और विकास की संभावनाएं” में भारत में निर्यात आधारित व्यापार नीति की आलोचना की थी।
पंजाब विश्वविद्यालय और दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में डॉ. सिंह ने व्यापार करने के लिए सबसे अच्छा कब है और कहां शिक्षक के रूप में कार्य किया जो उनकी अकादमिक श्रेष्ठता दिखाता है। इसी बीच में कुछ वर्षों के लिए उन्होंने यूएनसीटीएडी सचिवालय के लिए भी कार्य किया। इसी के आधार पर उन्हें 1987 और 1990 में जिनेवा में दक्षिण आयोग के महासचिव के रूप में नियुक्ति किया गया।
1971 में डॉ. सिंह वाणिज्य मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार के रूप में शामिल हुए। 1972 में उनकी नियुक्ति वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार के रूप में हुई। डॉ. सिंह ने वित्त मंत्रालय के सचिव; योजना आयोग के उपाध्यक्ष; भारतीय रिजर्व बैंक के अध्यक्ष; प्रधानमंत्री के सलाहकार; विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया।
डॉ सिंह ने 1991 से 1996 तक भारत के वित्त मंत्री के रूप में कार्य किया जो स्वतंत्र भारत के आर्थिक इतिहास में एक निर्णायक समय था। आर्थिक सुधारों के लिए व्यापक नीति के निर्धारण में उनकी भूमिका को सभी ने सराहा है। भारत में इन वर्षों को डॉ. सिंह के व्यक्तित्व के अभिन्न अंग के रूप में जाना जाता है।
डॉ. सिंह को मिले कई पुरस्कारों और सम्मानों में से सबसे प्रमुख सम्मान है – भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण(1987); भारतीय विज्ञान कांग्रेस का जवाहरलाल नेहरू जन्म शताब्दी पुरस्कार (1995); वर्ष के वित्त मंत्री के लिए एशिया मनी अवार्ड (1993 और 1994); वर्ष के वित्त मंत्री के लिए यूरो मनी अवार्ड (1993), कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय (1956) का एडम स्मिथ पुरस्कार; कैम्ब्रिज के सेंट जॉन्स कॉलेज में विशिष्ट प्रदर्शन के लिए राइट पुरस्कार (1955)। डॉ. सिंह को जापानी निहोन किजई शिम्बुन एवं अन्य संघो द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। डॉ. सिंह को कैंब्रिज एवं ऑक्सफ़ोर्ड तथा अन्य कई विश्वविद्यालयों द्वारा मानद उपाधियाँ प्रदान की गई हैं।
डॉ. सिंह ने कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों और सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। उन्होंने 1993 में साइप्रस में राष्ट्रमंडल प्रमुखों की बैठक में और वियना में मानवाधिकार पर हुए विश्व सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया है।
अपने राजनीतिक जीवन में डॉ. सिंह 1991 से भारतीय संसद के उच्च सदन (राज्य सभा) के सदस्य रहे जहाँ वे 1998 से 2004 तक विपक्ष के नेता थे। डॉ. मनमोहन सिंह ने 2004 के आम चुनाव के बाद 22 मई 2004 को प्रधानमंत्री के रूप के शपथ ली और 22 मई 2009 को दूसरी बार प्रधानमंत्री बने।
डॉ. सिंह और उनकी पत्नी श्रीमती गुरशरण कौर की तीन बेटियां हैं।

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