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भारत में शीर्ष विदेशी मुद्रा दलाल

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मनमोहन की विदाई और मोदी के आने के महज आठ साल के भीतर एक बार फिर भारत कंगाल बनने की तरफ़ बढ़ रहा!

भारत जिस तरह के आर्थिक संकट में घिरता नजर आ रहा है , यह देश को उसी तरफ ले जा रहा है, जैसा संकट हमने 1991 में देखा था। तब पीवी नरसिंहराव को चंद्रशेखर और अन्य पूर्व प्रधानमंत्री से विरासत में भारी कर्ज, खाली खजाना और खाली विदेशी मुद्रा भंडार मिला था।

चंद्रशेखर सरकार ने तो महज तीन हफ्ते के खर्च के लिए बचे सरकारी खजाने को थोड़ा सा भरने के लिए देश का सोना तक गिरवी रख दिया था।

इसके बाद नरसिंहराव ने प्रधानमंत्री बनते ही मनमोहन सिंह को तत्काल ही वित्त मंत्री बना दिया। यह वही दिन था, जिसके बाद देश ने चंद्रशेखर जैसा दौर दोबारा नहीं देखा और एक के बाद एक कदम उठाकर मनमोहन सिंह ने आर्थिक उदारीकरण का जैसा स्वर्णिम अध्याय लिखना शुरू किया, वह मुकम्मल तब हुआ जब मनमोहन सिंह दो कार्यकाल के लिए प्रधानमंत्री बने।
यही वह स्वर्णिम अध्याय है, जिसमें मनमोहन के आने के वक्त के कंगाल भारत के मनमोहन की राजनीतिक विदाई के वक्त अमेरिका और चीन के लिए चिंता का सबब बनने की गौरवमई गाथा दर्ज है।

तब अमेरिका और चीन तो इस कदर घबरा रहे थे कि कहीं भारत की आर्थिक तरक्की बहुत जल्द दुनिया में भारत को शीर्ष पर पहुंचा कर उन्हें पीछे न धकेल दे।

लेकिन ऐसा हुआ नहीं क्योंकि मनमोहन चले गए और मोदी आ गए। मनमोहन की विदाई और मोदी के आने के महज आठ साल के भीतर अब भारत एक बार फिर चंद्रशेखर के दौर यानी 1991 का कंगाल भारत बनने की तरफ़ बढ़ता नजर आ रहा है।

ऐसे हालात में देश को फिर एक बार मनमोहन जैसा वित्त मंत्री या प्रधानमंत्री चाहिए लेकिन अब शायद ही कभी दोबारा ऐसा हो पाए। क्योंकि हमारे देश की गंदी राजनीति कभी भी ऐसे सरल, विद्वान, मेहनतकश, विनम्र और ईमानदार व्यक्ति को प्रधानमन्त्री तो क्या एक पार्षद के पद तक नहीं जाने देती है।

मनमोहन तो इस वजह से प्रधानमंत्री बन पाए थे क्योंकि तब नेहरू परिवार में सोनिया के विदेशी मूल का मुद्दा बीजेपी ने तूल पकड़ा रखा था और राहुल/ प्रियंका अनुभवहीन और कम उम्र थे।

इसी वजह से मनमोहन को एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर भी कहा जाता है। मनमोहन ने अपने वित्त मंत्री के कार्यकाल और फिर प्रधानमंत्री के कार्यकाल में कोई राजनीति, गुटबाजी या कुछ भी ऐसा नहीं किया, जिससे उनकी कुर्सी या कद की ताकत पार्टी या सरकार में बढ़े।

वह अपने पद और कुर्सी के लिए पहले नरसिंहराव फिर सोनिया के हमेशा ही मोहताज रहे। जाहिर है, उन्हें उस पद पर रहकर जो काम करना था, बस वह वही पूरी ईमानदारी से करते रहे। यानी मनमोहन को नेता की बजाय नौकरशाह ही कहा जा सकता है।

अब कौन भला सिर्फ काम करने अर्थात किसी नौकरी की मानसिकता वाले व्यक्ति को किसी ताकतवर पद पर बने रहने देगा? लिहाजा मनमोहन सिंह जैसा काबिल व्यक्ति बतौर प्रधानमंत्री तो अब देश को शायद कभी मिलेगा नहीं।

रही बात, आर्थिक संकट दूर करने का फ्री हैंड भारतीय मूल के किसी अंतरराष्ट्रीय आर्थिक विशेषज्ञ को या पैनल को देने की तो मोदी सरकार वह भी नहीं करेगी। क्योंकि देश की सवा सौ करोड़ की आबादी के साथ-साथ अदानी, अंबानी, गुजराती लॉबी, पार्टी फंड और भाजपा नेताओं और उनके बाल- बच्चों के उद्यम/ रोजी- रोटी/ कमाई की चिंता का सारा बोझ भी मोदी जी के ही नाजुक कंधों पर है। फिर अपना पद/ कद भी तो उनको इन्हीं लोगों की मदद से बचाना और बढ़ाना है।

इसलिए पूरी आशंका इसी बात की है कि पूरी दुनिया पर मंडरा रहे आर्थिक संकट का असर भारत पर कम पड़े, ऐसा चमत्कार यह सरकार नहीं कर पाएगी। बाकी मोदी हैं तो नामुमकिन तो कुछ भी नहीं है… 1991 जैसे आर्थिक संकट की वापसी भी नहीं…

कुछ खबरें ऐसी आ रही हैं कि भारत का विदेशी मुद्रा भंडार, जो पहले ही काफी घट चुका है अब अगले कुछ महीनों बाद घटकर आधा रह जाएगा। उसकी वजह यह बताई जा रही है कि देश को विदेशी मुद्रा भंडार की लगभग आधी रकम को विदेशी कर्ज चुकाने में खर्च करना पड़ेगा।

यूं तो रुपए के लगातार गिरने से आयात बिल और राजस्व घाटा भी बढ़ता जा रहा है इसलिए विदेशी मुद्रा भंडार के आधे रह जाने की इस खबर को काफी चिंताजनक माना जाना चाहिए। लेकिन मोदी जब तक हैं, हमें घबराने की खास जरूरत है नहीं।

दुनिया मंदी की तरफ बढ़ रही है और भारत का खजाना खाली होता जा रहा है , फिर भी देश के आर्थिक भविष्य को उज्जवल बताया जा रहा है तो जरूर मोदी जी के पास कोई न कोई नया मास्टरस्ट्रोक होगा। भक्तों की तरह हमें भी मोदी जी पर अगाध श्रद्धा रखनी चाहिए।

हो सकता है कि आने वाले समय में मोदी जी की कोई नई लीला देखकर देश एक बार फिर गदगद हो जाए।

इससे पहले भी मोदी जी ने नोटबंदी का मास्टरस्ट्रोक खेलकर जो लीला दिखाई थी, उसने एक- दो बरस के लिए देश की जीडीपी को भले ही रसातल में पहुंचा दिया हो लेकिन भक्तों के दिल पर उसके बाद से मोदी जी का प्रभाव और बढ़ गया।

दिल एक ही है और मोदी जी उसे बार- बार जीतकर जिस तरह अभी तक देश में आर्थिक ‘खुशहाली‘ की बयार लाए हैं, उससे तो यही लगता है कि हमें इस तरह के डराने वाले आर्थिक आंकड़ों को देखना ही नहीं चाहिए। श्रद्धा भाव से मोदी मोदी करते हुए 2024 में भी अपना वोट मोदी जी को ही दे आना चाहिए। आंकड़ों का क्या है, यह तो बदले भी जा सकते हैं।

फिर धर्म को बचाने के लिए अगर हमें श्रीलंका गति को भी प्राप्त होना पड़े तो कोई बड़ी कुर्बानी इसे नहीं माना जाएगा।

हमें तो श्रीलंका वालों से सबक लेना चाहिए कि किस तरह देश के पूरी तरह से आर्थिक रूप से बर्बाद होने तक वहां की जनता आंख मूंद कर अपने सिंहली गौरव की लड़ाई तमिलों से लड़ने वाले राजपक्षे पर भरोसा करती रही।

पता नहीं राजपक्षे क्यों ऐसी अंधभक्त जनता को बस इतनी सी बात पर नाराज होकर छोड़कर विदेश चले गए कि जनता ने उनके महल पर कब्जा कर लिया।

हालांकि मोदी जी भी फकीर हैं और पहले ही कह चुके हैं कि गलत निकला तो झोला उठाकर निकल पड़ूंगा। चौराहे के लिए भी कोई आह्वान जनता से वह पहले ही कर चुके हैं। इसलिए मैं तो मान ही नहीं सकता कि देश में कभी कोई आर्थिक संकट आएगा।

मोदी राज में रुपया पहुंचा रसातल में !!

  • 2014 से लेकर अब तक लगभग 40 प्रतिशत गिर चुका है रुपया
  • आसन्न ग्लोबल मंदी में रुपया अभी और नीचे जाने के आसार

रुपया जिस रफ्तार में नीचे गिर रहा है, उससे साफ पता चल रहा है कि एक बड़े आर्थिक भूचाल के आने से पहले डगमगा रही ग्लोबल इकॉनमी में भारत भी खतरे में है।

अगर आगामी दिसंबर से साल- डेढ़ साल तक चलने वाली मंदी का अर्थशास्त्रियों और आर्थिक / वित्तीय संस्थाओं का अनुमान अगर सही निकला तो कोई बड़ी बात नहीं कि आने वाले कुछ महीनों/ बरसों में रुपया गिरकर सेंचरी मार ले यानी 100 के ऊपर निकल जाए।

फिलहाल यह पहली बार 82 के स्तर को पार कर चुका है। जब नरेंद्र मोदी ने 2014 में सत्ता संभाली थी, तब यह लगभग 58-59 रुपए के स्तर पर था। यानी मोदी के आठ साल के कार्यकाल में रुपया तब से तकरीबन 40 प्रतिशत नीचे आ चुका है।

आठ साल में इतनी बड़ी गिरावट तब हुई, जब दुनिया में मंदी या ऐसी आर्थिक उथलपुथल नहीं थी। अब चूंकि दुनिया ही डगमगा रही है तो अगले आठ साल जैसी या उससे भी बड़ी गिरावट मंदी के साल- दो साल के दौर में ही न हो जाए, इसकी चिंता अर्थशास्त्रियों को सताने लगी है।

अगर मंदी को दरकिनार कर एक बार को केवल यही कल्पना कर ली जाए कि अगले आठ साल में रुपया इसी रफ्तार से 40 प्रतिशत गिरकर 114-115 पर पहुंच सकता है तो स्थिति बड़ी भयावह नजर आने लगेगी।

हालांकि रुपया गिरकर कहां तक पहुंचेगा, यह पक्के तौर पर तो अभी कोई नहीं बता सकता लेकिन मोदी सरकार में रुपया जिस रफ्तार में नीचे आया है, वह भविष्य के लिए खतरे का अलार्म तो है ही।

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BREAKING NEWS | RBI ने विदेशी मुद्रा ऐप्स की अलर्ट सूची जारी की

RBI ने विदेशी मुद्रा ऐप्स की अलर्ट सूची जारी की: इस सूची में अनधिकृत ऐप्स शामिल हैं जिनमें बहुत प्रसिद्ध OctaFX भी शामिल है जो कि IPL टीम दिल्ली कैपिटल्स का आधिकारिक ट्रेडिंग प्रायोजक है| भारतीय रिजर्व बैंक (RBI): भारत में विदेशी मुद्रा बाजार को नियंत्रित करने वाले ने अनधिकृत इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म पर विदेशी मुद्रा लेनदेन में शामिल विदेशी मुद्रा दलालों की एक अलर्ट सूची जारी की है।

भारतीय रिज़र्व बैंक ने देखा कि इतने सारे ब्रोकर प्लेटफ़ॉर्म उपयोगकर्ताओं को उच्च रिटर्न जैसे आकर्षक ऑफ़र के साथ आकर्षित करते हैं। आगे रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया इन प्लेटफॉर्म्स के यूजर्स को एक धमकी भरी खबर देता है। आरबीआई ने कहा कि अब से इन प्रतिबंधित प्लेटफॉर्म के यूजर्स पर मुकदमा चलाया जा सकता है।

BREAKING NEWS | RBI ने विदेशी मुद्रा ऐप्स की अलर्ट सूची जारी की

इस सूची में 34 अवैध ऐप्स, OctaFX सहित फॉरेक्स प्लेटफॉर्म शामिल हैं, जो इंडियन प्रीमियर लीग (IPL) टीम दिल्ली कैपिटल्स का आधिकारिक प्रायोजक है।

RBI issues alert list: Declares these 34 forex trading Platforms Unauthorized.

👉 Here's a full list of unauthorized forex trading apps and websites

इसके अलावा आरबीआई ने कहा कि अगर कोई ऐप या ब्रोकर प्लेटफॉर्म इस सूची में शामिल नहीं है तो उसे भारत के शीर्ष बैंक द्वारा अधिकृत नहीं माना जाना चाहिए।

भारतीय रिजर्व बैंक के नियमों के अनुसार, निवासी व्यक्ति को अनुमत उद्देश्यों और अधिकृत फर्म के साथ विदेशी मुद्रा लेनदेन करना चाहिए, यह फेमा (विदेशी मुद्रा विनिमय प्रबंधन अधिनियम, 1999) के नियमों और विनियमों के अनुसार किया जाना चाहिए।

अगर कोई विदेशी मुद्रा लेनदेन करना चाहता है; ये इलेक्ट्रॉनिक रूप से किया जा सकता है। ऐसा करते समय, भारत के एनएसई (नेशनल स्टॉक एक्सचेंज), बीएसई (बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज), और एमएसई (मेट्रोपॉलिटन स्टॉक एक्सचेंज) जैसे आरबीआई द्वारा मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंजों के साथ लेनदेन किया जाना चाहिए।

आरबीआई ने विदेशी मुद्रा व्यापार पर प्रतिबंध लगाया? भारत में विदेशी मुद्रा व्यापार प्रतिबंध?

सवाल उठता है कि भारत में फॉरेक्स ट्रेडिंग के प्लेटफॉर्म पर प्रतिबंध क्यों?

इसकी शुरुआत इसी साल फरवरी से हुई है, जब आरबीआई ने इतने लोगों को ठगते देखा था। उस समय आरबीआई ने ऐसे प्लेटफॉर्मों को चेतावनी दी थी जिनमें अनधिकृत तरीके से विदेशी मुद्रा व्यापार शामिल है।

आरबीआई पहले ही ऐसी संस्थाओं को यह कहकर चेतावनी दे चुका है कि उन्हें उनके खिलाफ कुछ कड़ी दंडात्मक कार्रवाई करने की आवश्यकता है जो विदेशी मुद्रा विनिमय प्रबंधन अधिनियम (फेमा) या इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म (ईटीपी) के तहत विनियमित नहीं हैं।

उस दौरान भारतीय रिजर्व बैंक ने अनधिकृत संस्थाओं की सूची जारी नहीं की लेकिन आरबीआई ने उनसे स्पष्ट रूप से स्पष्टीकरण मांगा।

इसके कारण आरबीआई ने 34 अनधिकृत विदेशी मुद्रा दलालों की सूची जारी की।

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने इन 34 संस्थाओं को चेतावनी दी और दावा किया कि वे न तो FEMA अधिनियम, 1999 के तहत विदेशी मुद्रा में सौदा करने के लिए अधिकृत हैं और न ही इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म के रूप में।

अगर आपने भारत में विदेशी मुद्रा व्यापार प्रतिबंध के बारे में खबर सुनी है, तो यहां आएं और पूरी सच्चाई जानें कि आरबीआई ने इन 34 संस्थाओं पर क्यों अलर्ट किया। आरबीआई ने समय-समय पर इन संस्थाओं का अवलोकन किया और लोगों और उनके पैसे की सुरक्षा के लिए आरबीआई ने ऐसा किया।

ऐसा करके आरबीआई दूसरे प्लेटफॉर्म्स या वेबऐप्स को कड़ा संदेश दे रहा है जो किसी को भी ठगने की फ़िराक में रहते है |

विदेशी विनिमय बाजार का परिचय

हिंदी

एक व्यापारी के बारे में सोचें जो विदेशी देशों को माल निर्यात और अंतरराष्ट्रीय व्यापारियों से माल आयात करता है। घरेलू बाजार में , हम व्यापार प्रणाली को आसानी से समझ सकते हैं। आप एक वस्तु खरीदते हैं और विक्रेता को रुपये में भुगतान करते हैं। लेकिन आप अंतरराष्ट्रीय व्यापार के बारे में क्या जानते हैं ? एक विदेशी व्यापारी माल भारत में शीर्ष विदेशी मुद्रा दलाल के बदले में रुपए स्वीकार नहीं करेगा और अपनी देशीय मुद्रा की मांग भी कर सकता है। अंतरराष्ट्रीय व्यापार की जटिल प्रकृति का होने के कारण , विभिन्न देशों में विभिन्न मुद्राओं होने के कारण , बाजार दर पर एक मुद्रा परिवर्तित को दूसरी मुद्रा में बदलने की आवश्यकता होती है।

विदेशी मुद्राओं का व्यापार विशेष बाजार में किया जाता हैं। विदेशी विनिमय ( या फोरेक्स या एफएक्स ) बाजार सबसे बड़ा बाजार है , जिसमें विदेशी व्यापारियों के बीच ट्रिलियन डॉलर से अधिक मूल्य का आदान – प्रदान होता है।

विदेशी मुद्राओं का व्यापार भारतीय बाजार सहित विभिन्न अंतरराष्ट्रीय स्थानों में किया जाता है , और यह 24 घंटे खुला रहता है। यह बैंकों , दलालों , संस्थागत निवेशकों , खुदरा निवेशकों , और निर्यात – आयातकों का एक विशाल नेटवर्क है।

तो , विदेशी विनिमय क्या है ? सरल शब्दों में , एक मुद्रा को दूसरी मुद्रा में परिवर्तित करना विदेशी विनिमय कहलाता है। उदाहरण के लिए , एक भारतीय व्यापारी को अमेरिका में एक विक्रेता का भुगतान करने के लिए रुपए डॉलर में बदलना पड़ता है। विभिन्न देशों में विभिन्न मुद्राओं के होने की वजह से यह आवश्यकता उत्पन्न होती है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जब अंतरराष्ट्रीय व्यापार विभिन्न देशों के बीच एक आदर्श बन गया , तब वैश्विक समुदाय ने सभी विदेशी मुद्रा लेनदेन के लिए मानक मुद्रा के रूप में अमेरिकी डॉलर को चुनने पर अपनी सहमती जताई। नतीजतन , एक अंतरराष्ट्रीय व्यापार में पहले घरेलू मुद्रा डॉलर में परिवर्तित हो जाती है। इसी तरह , विक्रेता को भी डॉलर में भुगतान स्वीकार करना पड़ता है और फिर इसे अपनी देशीय मुद्रा में परिवर्तित करना पड़ता है। आजकल , नियम कम सख्त हो गए है , और कुछ मुद्राओं के लिए सीधे ही परिवर्तित करने भी अनुमति है।

विदेशी विनिमय हमेशा दो मुद्राओं में होता है , भारत में शीर्ष विदेशी मुद्रा दलाल जहां एक मुद्रा खरीदी जाती है , तो दूसरी मुद्रा बेचीं जाती है। पहली मुद्रा को ‘ आधार मुद्रा ‘ और दूसरा ‘ उद्धरण मुद्रा ‘ कहा जाता है।

मुद्रा बाजार में दरें कैसे निर्धारित होती हैं?

विदेशी विनिमय बाजार में , मुद्राओं को एक सहमत दर पर आदान – प्रदान किया जाता है , जिसे विनिमय दर कहते है। इन दरों को नियमित रूप से अपडेट किया जाता है , और ये दरें कई आर्थिक और राजनीतिक कारकों के आधार पर निर्धारित की जाती हैं।

स्टॉक एक्सचेंजों के माध्यम से, घरेलू बाजार में, साथ ही सिंगापुर , दुबई और लंदन जैसे विभिन्न अंतरराष्ट्रीय तटस्थ बाजारों में मुद्रा व्यापार किया जाता है। विदेशी विनिमय के स्थानीय बाजार को तटवर्ती बाजार विदेशी बाज़ार अपतटीय बाजार कहा जाता है। अपतटीय मुद्रा बाजार विभिन्न स्टेकहोल्डर्स का एक जटिल नेटवर्क है जहां व्यापारी न केवल मुद्रा व्यापार में बल्कि एनडीएफ और दर मध्यस्थता में भी शामिल होते हैं।

मुद्राओं को यूडीएस / आईएनआर , ईयूआर / यूडीएस , यूडीएस / जेपीवाई जैसे जोड़े में उद्धृत किया जाता हैं। और , वहाँ एक प्रत्येक दो मुद्राओं के साथ दर जुडी हुई है। मान लें कि यूडीएस / सीएडी के लिए उद्धृत मूल्य 1.2569 है। इसका मतलब है कि एक डॉलर खरीदने के लिए आपको 1.2569 कैनेडियन डॉलर का भुगतान करना होगा।

विदेशी मुद्रा बाजार अस्थिर है। मुद्रा का मूल्यांकन आर्थिक और राजनीतिक परिस्थितियों , ब्याज दरों , मुद्रास्फीति आदि जैसे कारकों पर निर्भर करता है। जब किसी देश की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है , और राजनीतिक स्थिति स्थिर है , तो इसकी मुद्रा को अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़त मिल सकती है। इसी तरह , आर्थिक अस्थिरता , आंतरिक और बाहरी राजनीतिक उथल – पुथल , या युद्ध, मुद्रा मूल्य गिरने का कारण बन सकते हैं। कभी कभी , सरकार भी दरों को प्रभावित करने के लिए विदेशी मुद्रा बाजार में भाग लेती हैं।

जब घरेलू मुद्रा सराहना कर रही है , तो विदेशी मुद्रा की तुलना में इसका मूल्य बढ़ जाता है। आयात सस्ता हो जाता है , और निर्यात महंगा हो जाता है। आइए उपरोक्त उदाहरण कू समझें। मानिए , सीएडी के लिए विदेशी विनिमय दर 1.2569 से 1.2540 तक बदल जाती है। इसका मतलब है कि कैनेडियन डॉलर, डॉलर के मुकाबले बढ़ गया है , और अमरीकी डालर सीएडी की तुलना में सस्ता हो गया है। इसी तरह , यदि विनिमय दर 1.2575 तक बढ़ जाती है , तो हम कहेंगे कि कैनेडियन डॉलर का मूल्य कम हो गया है।

विदेशी विनिमय बाजार में , मुद्रा व्यापार तीन आकार , माइक्रो , मिनी और मानक लॉट्स में होता है। माइक्रो सबसे छोटी मात्रा है , जिसमे किसी भी मुद्रा की 1000 इकाइयां होती हैं। मिनी लॉट में 10,000 इकाइयां हैं , और मानक लॉट 100,000 इकाइयां है। आप चाहते हैं कि किसी भी संख्या में व्यापार कर सकते हैं , जैसे सात माइक्रो लॉट , तीन मिनी लॉट , या पंद्रह मानक लॉट।

विदेशी मुद्रा बाजार में ट्रेडिंग

आकार और मात्रा के संदर्भ में , विदेशी विनिमय बाजार सबसे बड़ा है , जिसमे 2019 में प्रति दिन 6.6 ट्रिलियन डॉलर से अधिक का व्यापार होता है। विदेशी विनिमय व्यापार के लिए सबसे बड़े व्यापारिक केंद्र लंदन , न्यूयॉर्क , सिंगापुर और टोक्यो हैं।

विदेशी विनिमय बाजार सप्ताह में पांच दिनों में 24 घंटे के लिए खुला रहता है , शनिवार और रविवार के दिन अवकाश रहता है। यह एक अत्यधिक लिक्विड बाजार है। इस तरह का होने के कारण , विदेशी विनिमय बाजार अन्य बाजारों से अलग है।

विदेशी मुद्रा निम्नलिखित के रूप में विभिन्न बाजार होते हैं।

स्पॉट मार्केट

स्पॉट मार्केट में , मुद्रा प्राप्त करने के दो दिनों के भीतर व्यापार होता है। फर्क सिर्फ कैनेडियन डॉलर में है , जिसमें व्यापारियों को अगले कारोबारी दिन पर व्यापार करना होता हैं।

स्पॉट मार्केट अत्यधिक अस्थिर है और जिसमें तकनीकी व्यापारियों का बोलबाला है, जो कम अवधि में बाजार की प्रवृत्ति की दिशा में व्यापार करते हैं। वे दैनिक मांग और आपूर्ति कारकों के आधार पर कीमत में उतार – चढ़ाव को भुनाने की कोशिश करते हैं। दीर्घकालिक मुद्रा परिवर्तन देश की अर्थव्यवस्था , नीति , ब्याज दरों और अन्य राजनीतिक विचारों भारत में शीर्ष विदेशी मुद्रा दलाल में मूलभूत परिवर्तनों पर निर्भर करता है।

फॉरवर्ड मार्केट

फॉरवर्ड बाजार, स्पॉट मार्केट से भिन्न होता है , जहां मुद्राओं का व्यापार तुरत के बजाय भावी तारीख पर किया जाता है। भावी कीमत को स्पॉट दर के साथ शेष अंक को ( दो मुद्राओं के बीच ब्याज दर अंतर ) जोड़कर या घटाकर निर्धारित किया जाता है। दर लेनदेन की तारीख पर तय की जाती है , लेकिन परिसंपत्ति को परिपक्वता तिथि पर अंतरित किया जाता है।

अधिकांश फॉरवर्ड अनुबंध एक वर्ष के लिए होते हैं। लेकिन कुछ बैंक लम्बी अवधि के अनुबंध भी ऑफर करते हैं। ये अनुबंध व्यापर में शामिल पार्टियों की जरूरतों को पूरा करने के लिए कितनी भी विदेशी मुद्रा के लिए हो सकते हैं।

फ्यूचर बाजार

फ्यूचर्स अनुबंध फॉरवर्ड अनुबंध के समान होते हैं , जहां सौदा एक निश्चित दर पर भावी तारीख पर तय किया जाता है। इन अनुबंधों का कमोडिटी बाजार में कारोबार किया जाता हैं और व्यापारियों द्वारा विदेशी मुद्राओं में निवेश करने के लिए उपयोग किया जाता है।

विदेशी विनिमय व्यापार:भारत में शीर्ष विदेशी मुद्रा दलाल एक सचमुच का उदाहरण

विदेशी विनिमय व्यापार अनुमानों पर आधारित होता है। मान लें कि व्यापारी यूरोपीय सेंट्रल बैंक से डॉलर के मुकाबले यूरो की कीमत को समायोजित करने की करता है, तो डॉलर में बढ़त होगी। इससे , वह 1.भारत में शीर्ष विदेशी मुद्रा दलाल 12 की विनिमय दर के लिए €100,000 के लिए एक अल्पकालिक अनुबंध से जुड़ जाता है। अब मान लें कि बाजार में मंदी आ जाती है और यूरो 1.10 तक कम हो जाता है। तो , व्यापार में , व्यापारी $2000 का लाभ कमाता है।

अल्पकालिक अनुबंध से व्यापारी 112,000$ कमा सकता हैं। यूरो का मूल्य गिरने पर, व्यापारियों को मुद्रा पुनर्खरीदने के लिए केवल 110,000 डॉलर का भुगतान करना होगा , इस प्रकार $2000 का लाभ होगा। यूरो की कीमत में वृद्धि होने पर, व्यापारी को नुकसान होगा।

संक्षिप्त में, विदेशी विनिमय बाजार अत्यधिक अस्थिर और लिक्विड है , जहां लाभ के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्राओं का व्यापार किया जाता है। वैश्विक मुद्रा बाजार के बारे में बेहतर समझ रखना अच्छा है क्योंकि इसका घरेलू बाजार पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। आमतौर पर , मुद्रा व्यापारी किन्हीं दो मुद्राओं में से एक पर सौदा करते हैं और लाभ कमाने के लिए विभिन्न बाजारों के माध्यम से इन दो मुद्राओं पर व्यापर करते हैं।

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